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________________ मज्झिमचउमणवयणे खाइयदुगहीणखाइया ण हवे | पुण सेसे मणवयणे सव्वे भावा हवंति फुडं ||89|| मध्यमचतुर्मनोवचने क्षायिकद्विकहीनक्षायिका न भवन्ति । पुनः शेषे मनोवचने सर्वे भावा भवन्ति स्फुटं ॥ अन्वयार्थ :- (मज्झिम चउमणवयणे) मध्यम चार मनोयोग वचन योग अर्थात् असत्य मनोयोग, उभय मनोयोग, असत्य वचन योग, उभय वचन योग में (खाइयदुगहीणखाइया ण हवे) क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र को छोड़कर शेष क्षायिक भाव नहीं होते हैं । (पुण) पुनः (सेसे मणवयणे) शेष मनोयोगों व वचनयोगों में (सव्वे) सभी क्षायिक (भावा) भाव (हवंति) होते हैं । अर्थात् सत्य, अनुभय मनोयोग और सत्य, अनुभय वचनयोग में सभी भाव होते हैं । संदृष्टि नं. 54 सत्यानुभयमनोवचनयोग भाव ( 53 ) सत्यमनोयोग, अनुभयमनोयोग, सत्यवचनयोग, अनुभय वचनयोग, इन चार योगों में त्रेपन भाव होते हैं । प्रथम गुणस्थान से लेकर 13 गुणस्थान पाये जाते हैं । भाव व्यवस्था गुणस्थानवत् जानना चाहिए। देखे संदृष्टि (1) गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव 1 2 3 4 5 6 7 8 9 सवेद 9 अवेद 10 11 12 13 Jain Education International 2 3 0 6 2 0 3 0 3 3 2 2 13 9 34 32 33 36 31 31 31 28 28 25 22 21 20 14 (102) For Private & Personal Use Only अभाव 19 222 2 2 2 2 2 2 223 2 21 20 17 22 22 25 25 28 31 33 39 www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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