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________________ कपड़ा और कागज इन तीनों पर ही ग्रंथ मिलते हैं किन्तु ताड़पत्र के ग्रंथ जैसलमेर के भण्डारों में ही मुख्यतया संगृहीत हैं। अन्य स्थानों में उनकी संख्या नाममात्र की है। कपड़े पर लिखे हुये ग्रंथ भी बहुत कम संख्या में मिलते हैं। अभी जयपुर के पार्श्वनाथ ग्रंथ भण्डार में कपड़े पर लिखा हुआ संवत् १५१६ का एक ग्रंथ मिला है। इसी तरह के ग्रंथ अन्य भण्डारों में भी मिलते हैं लेकिन उनकी संख्या भी बहुत कम है। सबसे अधिक संख्या कागज पर लिखे हुये ग्रन्थों की है जो सभी भण्डारों में मिलते हैं। ये १३वीं शताब्दी से मिलने लगते हैं। जयपुर नगर सम्वत् १७८४ में बसाया गया था। यहाँ के शास्त्र-भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषयवैचित्र्य आदि सभी दृष्टियों से उत्तम हैं। वैसे तो यहाँ के प्रायः प्रत्येक मन्दिर में शास्त्र संग्रह किया हुआ मिलता है; किन्तु जैनविद्या संस्थान का शास्त्र-भण्डार, बड़े मंदिर का शास्त्र-भण्डार, ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र-भण्डार, बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र-भण्डार, पांडे लूणकरणजी के मन्दिर का शास्त्र-भण्डार, पाटोदी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार आदि कुछ ऐसे शास्त्रभण्डार हैं जिनमें प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं के महत्त्वपूर्ण साहित्य का संग्रह है। अपभ्रंश का जितना अधिक साहित्य जयपुर के इन भण्डारों में संगृहीत है उतना राजस्थान के अन्य भण्डारों में संभवतः नहीं है। यहाँ के शासक एवं जनता दोनों ने ही मिलकर अथक प्रयासों से साहित्य की अमूल्य निधि को नष्ट होने से बचा लिया। इसलिये यहाँ के शासकों ने जहां राज्य स्तर पर ग्रंथ संग्रहालयों एवं पोथीखानों की स्थापना की, वहीं यहाँ की जनता ने अपनेअपने मन्दिरों एवं निवास स्थानों पर भी पाण्डुलिपियों का अपूर्व संग्रह किया।जयपुर का पोथीखाना जिस प्रकार प्राचीन पाण्डुलिपियों के संग्रह के लिए विश्वविख्यात हैं उसी प्रकार नागौर, जैसलमेर एवं जयपुर के जैन ग्रंथालय भी इस दृष्टि से सर्वोपरि हैं। बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र-भण्डार बधीचन्दजी का दिगम्बर जैन मन्दिर जयपुर में जौहरी बाजार के घी वालों के रास्ते में स्थित है। यहाँ प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं के ग्रन्थों का उत्तम संग्रह किया हुआ मिलता है। कुछ ग्रन्थों की ऐसी प्रतियां भी यहाँ है जो ग्रन्थ निर्माण के काफी समय के पश्चात् लिखी होने पर भी महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसी प्रतियों में स्वयम्भूका हरिवंशपुराण, महाकवि वीर कृत जम्बूस्वामीचरित्र, कवि सधारु का प्रद्युम्नचरित आदि उल्लेखनीय हैं। भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति 'वड्डमाणकाव्य' की वृत्ति की है जो संवत् १४८१ की लिखी हुई है। अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका Jan Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002683
Book TitleApbhramsa Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages126
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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