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शिवभूति ब्राह्मण
स्कँटिनकडे नमस्महिरो विन लेना कैम अलि इसिविल क
नरक विष्णा भुविधियो ॥१०॥नंनि सुणेविकु हिनय रेसि कागिनं (रय
विरा मानें वुझिन सयक चिरु करिविद रिसाव मि केनरेवहिय वेसभित्र विव
अनामसताघाष:
लखन पावेस मिसिवप सिमऊर
हानिका
अपभ्रंश - पाण्डुलिपि चयनिका
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वरुप
मुय कलि ना! ते मुखमु कालितः कृतकितन
समूहेन =
अत्यासक्त:
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