SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ ७ पउमचरिउ ण। पुंगव पुंडरीय पुरिसुत्तम विउल विसा रणुम्मिय उत्तम ॥ घत्ता॥ इय इक्कक्क पहाण जिणवर चलण णमंसेवि। संजम नियम गुणेहिं अप्पर थिय सइंभू सेवि॥ १५ ॥ ब॥ २३ ॥ ब॥ गए वणवासहो रामे। उज्झ न चित्तहो भावइ। थिय नीसासु मुयंति। महि उन्हालइ णावइ । सयलु वि जणु उम्माहिज्जंतउ। खणु वि ण थक्कइ णामु लयन्तउ। उव्विल्लिज्जइ गिजइ लक्खणु। मुरववजे वाइ लक्खणु। सुइ सिद्धन्त पुराणहिं लक्खणु। अअंकारि पढिज्जइ लक्खुणु। अण्णु वि जं जं किं पि सलक्खणु। लक्खण णामे वुच्चइ लक्खणु। का वि णारि सारंगि व वुण्णी। वड्डी धाह मुएवि परुण्णी। का वि णारि जं लेइ पसाहणु। तं उल्हावइ जाणई लक्खणु। का वि णारि जं परिहइ कंकण। धरइ स गाढउ जाणइं लक्खणु। नवरि न दीसई माए रामु ससीय सलक्खणु॥ १॥ ताम पडु पडह पडिपहय पहुं पंगणे। णाई सुर दुंदुही दिण्ण गयणंगणे। रसिय सय संख जायं महा गोंदलं। टिविल टंटंत घुम्मंत वरमंदलं। तालकंसालकोलाहलं काहलं। गीय संगीय संगीय गिज्जंत वर मंगलं। डमरु तिरिडिक्किया झल्लरी रउरवं। भंभ भंभीस गंभीर भेरीरवं। घंट जयघंट संघट्ट टंकारवं। घोल उल्लोल हलवोल मुह लारवं। तेण सद्देण रोमंच कंचुद्धया। गुंदलुद्धाम वहल अच्चन्भुया। सुहड संघाय सव्वा य थिय पंगणे। मेरु सिहरेसु नं अमर जिण जम्मणे। पणइ पप्फाव नड छत्त कइ वंदणं । णंदि जय भद्द जय जयहि जय सद्देणं ॥ घत्ता॥ लक्खण रामहं वप्पु निय भिच्चेहिं परियरियउ। जिण अहिसेयहे किज्जे नं सुरवइ नीसरियउ॥ २॥ जं णीसरिउ राउ आणंदे। वुत्तु नवेप्पिणु भरह णरिन्दें। हठं मि देव पई सहुं पव्वजमि। दुग्गइ गामिउ रज्जु न भुंजमि। रजु अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका Jan Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002683
Book TitleApbhramsa Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages126
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy