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________________ xviii प्रस्तावना तथा पेकिंग संस्करण के भोट भाषानुवाद को एन्ट्री करवाकर भेजने वाले हमारे वर्षों पुराने कल्याण मित्र जापानी विद्वान डॉ० फुजीनागा सिन (Dr. Fujinaga sin C/o Miyakonob Kosen, Miyakonojo, Miyarzaki, Postal Code 885-8567 Japan) बहुत - बहुत धन्यवाद के पात्र हैं । R = श्री रूपविजयजी महाराज, डहेला के जैन उपाश्रय ( दोशीवाड़ा की पोल, अहमदाबाद-३८०००१) में विद्यमान ग्रन्थ भण्डार से न्यायप्रवेशक मूल तथा टीका की प्रति आचार्य महाराज श्री जगच्चन्द्रसूरिजी महाराज के सौजन्य से ही प्राप्त हुई है । एतदर्थ मेरी ओर से उनको पुनः पुनः धन्यवाद । इस प्रति में अनेक पाठान्तर प्राप्त होते हैं जो अन्य प्रतियों में प्राप्त नहीं हैं । श्री सिद्धक्षेत्र पालीताणा नगर में वीसानीमा की धर्मशाला में, विक्रम संवत् २०५१ पोष सुदि दशमी बुधवार, तारीख ११ - ०१ - १९९५ की रात्रि में ८ : ५४ मिनट पर मेरे परमोपकारी परमपूज्या मातुश्री संघमाता साध्वीजी श्री मनोहर श्री जी महाराज १०१ वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गस्थ हुईं जो कि स्वर्गीय साध्वीश्री लाभश्रीजी महाराज ( सरकारी उपाश्रय वाले) की बहन तथा शिष्या है । उनका सतत आशीर्वाद ही मेरा अन्तरंग बल है और अति महान सौभाग्य है । मेरे वयोवृद्ध अत्यन्त विनीत प्रथम शिष्य देवतुल्य स्वर्गीय मुनिराज श्री देवभद्रविजयजी जिनका लोलाड़ा (शंखेश्वर तीर्थ के पास ) ग्राम में विक्रम संवत् २०४० में कार्तिक सुदि २ रविवार (६-११-८३) सायंकाल ६ बजे स्वर्गवास हुआ था, उनका भी इस प्रसंग पर अत्यन्त सद्भाव के साथ स्मरण कर रहा हूँ । मेरे अत्यन्त विनीत शिष्य मुनिश्री धर्मचन्द्रविजयजी, उनके शिष्य सेवाभावी मुनिराज श्री पुण्डरीकरत्नविजयजी, तपस्वी मुनिराज श्री धर्मघोषविजयजी, मुनिराज श्री महाविदेहविजयजी तथा मुनिराज श्री नमस्कारविजयजी इस कार्य में निरन्तर मेरे सहयोगी रहे हैं । विशेष रूप से अत्यन्त हर्ष की बात है कि श्री किरीटभाई के पुत्र श्री श्रेणिक भाई तथा श्री पीयूषभाईने स्वयं ही कम्प्यूटर में तिब्बती लिपि में टाइप सेटींग कर इस तिब्बती अनुवाद को भोट (तिब्बती) लिपि में कठिन परिश्रम के साथ कम्पोज करके मुद्रित किया है इसलिए दोनों भाईयोंको विशेष रूप से धन्यवाद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002682
Book TitleNyayapraveshakashastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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