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________________ xvi प्रस्तावना अशुद्ध हो जाता था, यह बात ध्यान में रखने की है । सामान्यतः बौद्ध ग्रन्थों के भोट भाषानुवाद सावधानी पूर्वक किए जाते थे, ऐसा अनेक लोगों का अनुभव है। श्री हरिभद्रसूरि महाराज द्वारा टीका के प्रारम्भ में ही (पृष्ठ १३में) दिए हुए दो श्लोकों से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि न्यायप्रवेशक के ऊपर अन्य अनेक व्याख्याओं का निर्माण हुआ था । न्यायप्रवेशक में (पृष्ठ २ पंक्ति ४) प्रत्याक्षाद्यविरुद्ध इति वाक्यशेष: यह जो वाक्य है वह न्यायप्रवेशक सूत्र का नहीं है। क्योंकि, न्यायप्रवेशक के दो भोट भाषा के अनुवादों और चीनी भाषानुवाद में इस वाक्य का अनुवाद ही प्राप्त नहीं है। पुनः न्यायप्रवेशकवृत्ति-पंजिका (पृष्ठ ७० पंक्ति १-६) में भी स्पष्टतः सूचित किया गया है कि यह वाक्य किसी अन्य वार्तिक का है ।। इस ग्रन्थ को तैयार करते हुए, आचार्य श्री हरिभद्रसूरि विरचित टीका की दो पाठपरम्पराएं प्राप्त होती हैं, (यह संकेत हमने पृष्ठ १४ पंक्ति २० में किया है।) उनमें से एक पाठ-परम्परा ऊपर रखकर, दूसरी पाठ-परम्परा टिप्पणी में प्रदान की है। पञ्जिका की भी दो पाठ-परम्पराएँ मिलती हैं, (देखो पृष्ठ ५६ पंक्ति १८) किन्तु उसमें महत्त्व का भेद प्राप्त नहीं है । जहाँ महत्त्व का भेद है वहाँ उसे टिप्पणी में दिखाया गया है। पञ्जिका की ताडपत्र पर लिखी हुई तीन प्रतियाँ मिलती हैं:१. शान्तिनाथ ताडपत्र भण्डार, खंभात २. जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार, जैसलमेर ३. खेतरवसही पाडा का भंडार, पाटण इनमें खेतरवसही पाडा के भंडार-पाटण-में कुछ समय पूर्व कितनी ही प्रतियो चोरी हो गई थी। उस कारण वह प्रति इस समय वहां प्राप्त नहीं है । परन्तु इसकी फोटोकॉपी ओरियन्टल इन्स्टीट्यूट लाइब्रेरी, बड़ौदा में प्राप्त है । इसी प्रति का उपयोग आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव ने भी किया था । सामान्यतः इस प्रति में ११९ पत्र हैं । उसमें से १, ४, ६२, ६३, ६४, ६७, ७० और ९० इतने पत्र आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव को भी नहीं मिले थे । हमारे द्वारा पञ्जिका ग्रन्थ सम्पूर्ण तैयार हो जाने के पश्चात् मूलतः कच्छ-माण्डवी के निवासी होते हुए भी वर्तमान में बड़ौदा विश्वविद्यालय में महत्त्व का काम संभालने वाले नवीनचन्द्र नानालाल शाह हमसे मिले थे । हमने उनसे बात की और उन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002682
Book TitleNyayapraveshakashastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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