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________________ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणम् लेसा तिन्नि पमत्तं, तेऊपम्हा उ अप्पमत्तंता। सुक्का जाव सजोगी, निरुद्धलेसो अजोगि त्ति ॥ ७३ ॥ बंधस्स मिच्छअविरइकसायजोग त्ति हेयवो चउरो। पंच दुवालस पणवीस पनरस कमेण भेया सिं॥ ७४ ।। आभिग्गहियं अणभिग्गहं च तह अभिनिवेसियं चेव। संसइयमणाभोगं, मिच्छत्तं पंचहा एवं ॥ ७५ ॥ बारसविहा अविरई, मणइंदियअनियमो छकायवहो। सोलस नव य कसाया, पणुवीसं पन्नरस जोगा॥ ७६ ॥ पणपन्नपन्नतियछहिय, चत्तउणचत्त छ चउ दुगवीसा। सोलसदसनवनवसत्तहेउणो न उ अजोगिम्मि॥ ७७॥ तो नाणदंसणावरणवेयणीयाणि मोहणिज्जं च। आउयनाम गोयंतरायमिइ अट्ठ कम्माणि ॥ ७८ ॥ सत्तट्ठ छे गबंधा, संतु दया अट्ठ सत्तचत्तारि । सत्तट्ठ-छ-पंचदुगं, उदीरणाठाणसंखेयं ॥ ७९ ॥ अपमत्तंता सत्तट्ठ मीसअपुव्वबायरा सत्त। बंधंति छ सुहुमो एगमुवरिमा बंधणोऽजोगी। ८० ॥ जा सुहुमो ता अट्ठ वि, उदए संते य होंति पयडीओ। सत्तट्ट वसंते खीणे सत्त चत्तारि सेसेसु ॥ ८१ ।। सत्तट्ठ पमत्तंता, कम्मे उइरेंति अट्ठ मीसो उ। वेयणियाउ विणा छ उ, अपमत्तअपुव्वअनियट्टी ॥ ८२॥ सुहुमो छ पंच उइरेइ पंच उवसंतु पंच दो खीणो। जोगी उ नाम गोए, अजोगि अणुदीरगो भयवं॥ ८३॥ उवसंतजिणा थोवा, संखेजगुणा उ खीणमोहजिणा। सुहुमनियट्टिनियट्टी, तिन्नि वि तुल्ला विसेसहिया॥ ८४॥ १. 'चत्तगुणचत्त' इति मू० अ०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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