SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस आद्यस्तोत्र में उपसंहार के पद्य में कवि की उस प्रतिभा के बीज का हमें भली भांति दर्शन हो जाता है जो आगे जाकर अंकुरित-पल्लवित और पुष्पित होती हुई नाना रूप ग्रहण करके कवि की यशश्री को बढ़ाती है। प्रथम रचना में होने वाले गुणापकर्ष के प्रति कवि स्वयं सजग है। जैसा कि उसने स्वयं लिखा है: 'अज्ञानाद् भणितिस्थितेः प्रथमकाभ्यासात् कवित्वस्य यत्' । अष्टप्रातिहार्यों के वर्णन के साथ उनकी धवल यशोकीर्ति का गुणगान करते हुए कवि ने कामना की है कि मुझे न राज्य चाहिए, न अर्थ चाहिए न भोग-सुख चाहिए, न इन्द्रपद चाहिए और न मोक्ष चाहिए। मुझे तो दिन-रात, स्वप्न और जागृत, स्थिर और चलते हुए, वन में और सभा में रहते हुए स्वयं के हृदय में आपकी अद्वैत भक्ति चाहिए। (पद्य ३१) इस स्तोत्र में कवि रूपक, अतिशयोक्ति, अनुप्रास, श्लेष आदि अलंकारों के माध्यम से स्वान्तर्भक्ति का निर्झर बहाया है। ३८. पार्श्वनाथस्तोत्रम् - यह अष्टक स्तोत्र है। इसमें श्रद्धा पूर्वक भगवान पार्श्वनाथ के गुणों का गान करते हुए स्रग्धरा स्तोत्र में रचना की गई है। अन्तिम नौंवा पद्य वसंततिलका छन्द में है। इसमें रूपक्र, अर्थान्तरन्यास, यमक आदि अलंकारों का सुन्दर समावेश है। ३९. पार्श्वनाथस्तोत्रम् - इस स्तोत्र में १० पद्य हैं। १ से ९ पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द में हैं और १०वां स्रग्धरा छन्द में है। इसमें अनुप्रास, यमक, रूपक, श्लेष अलंकारों का प्रयोग करते हुए कवि ने अपनी लघुता प्रदर्शित की है और भगवान के साथ अद्वैत होने की कामना की है। ४०. स्तम्भन-पार्श्वनाथस्तोत्रम् - इस स्तोत्र में स्तम्भनपुराधीश पार्श्वनाथ भगवान की स्तवना २४ पद्यों में की गई है। २३ पद्य शिखरिणी छन्द में है और २४वां पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द में। भगवान की स्तवना से समस्त व्याधियाँ दूर हो जाती है और समस्त प्रकार का आरोग्य एवं प्रस्तावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy