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ग्रथित है। इस स्तोत्र में भगवद्गुण कीर्तन के साथ भगवन्नाम-माहात्म्य से समस्त प्रकार के आधि-व्याधि उपद्रवों के नाश होने का प्रभावोत्पादक वर्णन किया गया है।
स्तम्भन पार्श्वनाथ स्तोत्र (आर्या छन्द ११) में स्तम्भनपुर के प्रसिद्ध तीर्थंपति पार्श्वनाथ की एवं महावीर विज्ञप्तिका (आर्या छन्द १२) में श्रमण भगवान् महावीर की सुन्दर और सुललित पदों में स्तवना की गई है। भाषा प्राकृत और छंद आर्या ही है। ३३. महावीरस्वामीस्तोत्र (भावारिवारणस्तोत्र)- समसंस्कृत प्राकृत भाषा में साहित्य-सर्जन करना अत्यन्त ही दुष्कर कार्य है, क्योंकि दोनों भाषाओं पर जिसका समान अधिकार हो और प्रतिभा हो वही इस शैली का अनुसरण कर सकता है। भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से ऐसे साहित्य की विशेष महत्ता है। इस प्रकार की कृति हमें सर्वप्रथम याकिनी महत्तरासूनु आचार्य हरिभद्रसूरि की 'संसारदावा' स्तुति मिलती है। प्रस्तुत महावीर स्तोत्र अपरनाम भावारिवारण भी इसी कोटि की सुन्दरतम रचना है।
भक्तामर, कल्याणमन्दिर, सिन्दूरप्रकर की तरह ही 'भावारिवारण' इसका आदि पद होने से यह महावीर स्तोत्र भी इसी नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार के नाम पड़ने से यह स्पष्ट ही है कि यह स्तोत्र जनता में बहुत लोकप्रिय होने से अत्यधिक पढ़ा जाता था। अपनी आलंकारिक योजना, प्रसादगुणवैभव, माधुर्य प्रचुरता, छन्द की गेयता, तथा भावानुकूल शब्दयोजना आदि के कारण इसमें आकर्षण और प्रभाव अधिक है। इस स्तोत्र को साहित्यिक स्तोत्र-साहित्य में भक्तामर और कल्याणमंदिर की कोटि में सरलता से रखा जा सकता है। स्तोत्र का लक्ष्य भगवान् की गुणगरिमा का गान करके संगीत लहरियों द्वारा आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करना है। इस स्तोत्र की रचना ३० वसन्ततिलका छन्दों में की गई है।
यह स्तोत्र जयसागरोपाध्याय प्रणीत टीका सहित हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा प्रकाशित है। इस स्तोत्र के चतुर्थ चरणरूप पादपूर्तिस्तोत्र की
प्रस्तावना
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