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________________ ५. पञ्चम परिशिष्ट - नेमिचन्द्र भण्डारी विरचित जिनवल्लभसूरि-गुरुगुणवर्णन पणमवि सामिय वीरजिण, गणहर गोयम सामि। सुधर्मसामिअन लगि सरणि जुगप्रधान सिवगामि ॥ १॥ तित्थुधरणु सु मुणिरयण, जुगप्रधान क्रमि पत्तु । जिणवल्लहसूरि जुगपवरो, जसु निम्मलउं चरित्तु ॥ २॥ तसु सुहगुरु गुणकित्तणइ, सुरराउ वि असमत्थु । तो भत्तिब्भर तरलियउ, कह हंउ कहि सकयत्थो॥३॥ कह भवसायर दुहपवर,कह पत्तउ मणुयत्तु। , किह जिणवल्लहसूरिवयणु, जाणउ समय पवित्तु ॥ ४॥ कह सबोहि मणु उल्लसिउ, कह सुद्धउ सम्मत्तु। जुगसमला नाएण मई, पत्तउ जिणविह-तत्तु ॥ ५ ॥ जिणवल्लभसूरि सुहगुरह, बलि कि जिसु गुरराय। जसु वयणेण विजाणीयए, तुट्टइ कुमय-कसाय॥ ६॥ मूढा मिल्हहु मूढ पहु, लग्गहु सुद्धइ धम्मि। जो जिणवल्लहसूरि कहिउ, गच्छउ जिम सिवरम्मि ।। ७ ।। अथिर माइ पिय बंधवइ, अथिर रिद्धि गिहवासु। जिणवल्लहसूरि पय नमउं, तोडउ भवदुहपासु॥ ८॥ परमपणइ न के वि गुरु, निम्मल धम्मह हुंति। सव्वि ति सुहगुरु मनियहिं, जे जिणवयण मिलंति ॥९॥ 'गुरु गुरु' गायवि रंजियहि, मूढउ लोउ अयाणु। . न मुणइ जं जिण आण विणु, गुरु हुइ सत्तु समाणु ॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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