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________________ २५६ पहवइ, साइणि डाइणि भूत प्रेत वेयाल न आधि व्याधि ग्रह गणह पीड ते किमइ न होइ ॥ कुट्ठ जलोदर रोग सवे, नासइ मयणासुंदरि तणी परि, नवपद झाण एणइ मंति। करंति ॥ ११॥ (१२) तणा गुण किता वखाणुं, एह गुण पार न जाणुं । तित्थ महिमा रायमंत्र - राजा उदवंतउ, जयवंतउ ॥ एक जीहए मंत्र नाणहीण छउमत्थ जिम सेतुंजइ - कप्प सयल मंत्र धुरि तित्थंकर गणहर पमुह, चवदह पूरव सार । एहनी आदि न को लहइ, गुण गरुअउ नवकार ॥ १२ ॥ (१३) अड ́ संपय नव पय सहित इकसठि लहु अक्खर, गुरु अक्खर सत्तेव एह जाणह परमक्खर गुरु जिणवल्लभसूरि भणइ सिव सुक्खह कारण, नरय तिरय गति रोग सोग बहु दुक्ख निवारण ॥ जल थलि महियलि वनि गहणि, समरणि होइ इक चित्तु । पंच परमेष्ठि मंत्रह तणी, सेवा करिज्यो नित्तु ॥ १३ ॥ इति श्रीनवकार - स्तोत्रम् Jain Education International नवकार-स्तोत्रम् * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002681
Book TitleJinvallabhsuri Granthavali
Original Sutra AuthorVinaysagar
Author
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2004
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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