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महावीरचरितम्
साहुसहस्सा चउदस, छत्तीसं साहुणी सहस्साणि। सेगूणट्ठिसहस्सं, लक्खं सड्ढा, दुगुण सड्डी ॥ ३४ ॥ चउदसपुव्वी वाई, मणपज्जविणो य तिचउपंचसया। सत्तसया केवलिणो, विउव्विणो तत्तिया तुज्झ ॥ ३५ ॥ पंचजमधम्मदेसग, इक्कारस गणहरा नव गणा ते। तेरस ओहिजिणसया, अट्ठसयाणुत्तरगईणं ॥ ३६॥ पंचंतरायहासाइ-छक्क मिच्छत्तमविर इमनाणं । अट्ठारस दोसा रागदोस निद्दा य मयणो य॥ ३७॥ इय नट्ठठ्ठारसदोसदाह चउतीस अइसयसणाह। पणतीसबुद्धवयणाइसेस अच्छाह जयनाह!॥ ३८॥ नत्थि भवियव्वनासो, जं गोसालो तुमंपि तिजयपहुं। अक्कोसीय हहा!! तुह, पुरो महेसी दहेसी य॥ ३९ ॥ जत्थ निवसंति संतो, खणंपि तं किर कुणंति सुकयत्थं । इय नूणमुसभदत्तं, देवाणंदं च नेसि सिवं ॥ ४० ॥ सेणियनिव-सिद्धाइयदेवी-मायंगजक्खकयसेव!। नवतत्तसत्तभंगिं, पयडसि देसूण तीस समा॥ ४१ ॥ मज्झिमपावाए हत्थिवाल भूवालसुंक सालाए। पजंकठिओ पासाओ, वासदुसय गए सड्डे ॥ ४२ ।। कत्तियअमावसाए, गोसे छ?ण साइनक्खत्ते। एगुच्चिय बावत्तरि-वरिसाऊ तं सिवं पत्तो ॥ ४३ ।। एवं वीरजिणे दिणेसर ! तुमं मोहंधविद्धंसणं, भव्वम्भोरुह बोह सोह जणयं दो सायरुच्छे यणं । थोउं जं कुसलाणुबंधि कुसलं पत्तोऽम्हि किंची तओ, जाइज्जा जिणवल्लहो मह सया पायप्पणामो तुह॥ ४४ ॥
इति महावीरदेवचरितम् * * *
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