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पौषधविधिप्रकरणम्
सत्तहा तिहा वा कायव्वं। तत्थ सत्तहा-सुत्तुट्ठिओ (१), पच्चूसावस्सए (२), चेइहरे (३), भोत्तु कामे (४), भुच्चा पच्चक्खंतो (५), पओसावस्सए (६), सुविउकामो (७) तं करेइ त्ति। तिहा पुण तिसंझं फुडमेव। जो पुण आहारपोसही देसओ सो पुण्णे पच्चक्खाणे तीरिए य खमासमणदुगेण मुहपोत्तिं पडिलेहिय खमासमणेण वंदिय भणइ-इच्छाकारेण संदिसह पारावह पोरिसीं पुरिम४ चउव्विहाहार एकासणं निव्वीयं आयंबिलं वा कयं, जा कावि वेला तीए पारावेमि। तओ सक्कत्थएण चेइए, वंदिय सज्झायं सोलसं वीसं वा सिलोगे काउं जहासंभवमतिहि- संविभागं वा दाउं मुहं हत्थपाए पडिलेहिय णमुक्कारपुव्वमरत्तदुट्ठो भुंजइ। भणियं च
रागद्दोसविरहिया, वणलेवाइउवमाइ भुंजंति। कढित्तु नमुक्कारं, विहीए गुरुणा अणुन्नाया॥ १॥ असुरसुरं अचबचबं अट्ठयमविलंबियं अपरिसाडिं।
मणवयणकायगुत्तो, भुंजे अह पक्खिवणसोही॥२॥ सो य आहारमाहारेइ। तत्थेव पुव्वसंदिट्ठसयणाइसमाणीयं नियघरे वा पंचसमिओ तिगुत्तो गंतुं मणवइकाएहिं अकयमकारियं फासुयं भत्तपाणं भुंजइ, न पुण भिक्खं हिंडइ। जेणेक्कारसिपडिमाठियं मुत्तुमन्नस्स धम्मत्थिणो गिहत्थस्स सुत्ते भिक्खाऽडणं नाणुन्नायं। तहाहि
भिक्खासद्दो चेवं, अनिययलाभविसओ त्ति एमाइ।
सव्वं चिय उववन्नं, किरियावंतम्मि उ जइम्मि॥१॥ तदवरो य दव्वलिंगधरो गिही वा,
पीणतणूवि हु दीणो, मूढो भिक्खाएँ भरइ जा उदरं।
सो धम्मलाघवकरो, पुरिसत्तं केवलं हणइ॥ १॥ न य जयणा एसत्ति वत्तव्वं। जओ
जह जोइसिओ कालं, सम्मं वाहिविगमं च वेज्जोत्ति।
जाणइ सत्थाउ तहा, गीओ जयणाए विसयं तु॥१॥ अओ न कुग्गहगहोवगूढमूढजणकप्पणामेत्तेण जयणा जायइ त्ति। एवं विहिणा भोत्तुमिरियावहियं पडिक्कमिय सक्कत्थवं भणिउं दुवालसावत्तवंदणं
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