SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कीर्तिकलाख्यो हिन्दीभाषानुवादः १५३ द्रव्य से घट बनता है, वह द्रव्य तो रहता ही है। इसलिये द्रव्य ही सामान्य, तथा नित्य है। उत्पाद आदि पर्याय ही विशेष तथा अनित्य हैं। द्रव्य तथा पर्याय दोनों का एक साथ ही प्रत्यक्ष होता है, इसलिये दोनों कथञ्चित् अभिन्न हैं, तथा द्रव्य और पर्याय रूप से कथञ्चित् भिन्न है, यह प्रत्यक्ष सिद्ध है ।) ॥२१॥ हे जिनेन्द्र ! वस्तु अनन्तधर्मात्मक ही है, अन्यथा वस्तु की सत्ता का उपपादन नहीं हो सकता, इस प्रकारके आप से उपदिष्ट अनुमान आदि प्रमाण भी एकान्तवादीरूप मृगों को भयभीत करन के लिये सिंहनाद के समान हैं । (सिंहनाद से भयभीत होकर मृग जैसे भाग जाते हैं, वैसे एकान्तवादी भी उक्त प्रत्यक्ष अनुमान आदि प्रमाणों का खण्डन न कर सकने के कारण अपने पक्ष के खण्डन के भय से दूर भाग जाते हैं। वाद में भाग नहीं लेते । घट को एकान्त अनित्य मान लेने से प्रथम क्षण में ही उसका नाश मानना होगा, तो घट का प्रत्यक्ष नहीं होगा, इसलिये घटकी सत्ता लुप्त होजायगी । एकान्तनित्य मानने से भी, नित्यपदार्थों के सदा एकरूप होने के कारण उससे जलाहरणादिकार्य नहीं हो सकेगा। अन्यथा कार्यभेद से स्वभावभेद मानना ही पड़ेगा । पदार्थ एक ही स्वभाव से अनेककार्य नहीं कर सकता और प्रत्यक्ष दीखने बाले उत्पाद तथा विनाश का अपलाप होगा । तथा घट को एकान्त सत् मानने से, वह पटरूप में भी सत् होजायगा। तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002680
Book TitleDvantrinshikadwayi Kirtikala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherBhailal Ambalal Shah
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy