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त्रुटित रह गये हैं । इसलिये साथ में शुद्धिपत्रक दे दिया गया है । जिस का पठन पाठन के समय आवश्यकतानुसार उपयोग करेंगे । संस्कृत व्याख्या सहित पुस्तक में दोनों द्वात्रिंशिकाओं के मूल श्लोक मात्र पृथक् भी दे दिये गये हैं, जिससे अभ्यासियों को आवृत्ति आदि में सुविधा हो। __आशा है कि प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन तथा अध्यापन के द्वारा जिज्ञासुजन आप्त का परिचय प्राप्त कर सम्यक्त्व को दृढ़करने में प्रगति करेंगे इति
भवदीयशा भाईलाल अम्बालाल का
जय जिनेन्द्र ।
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