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परिचय |
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तथा उपयोग में लानेके लिए प्रयत्न करनेमें हमें कोई बात उठा न रखनी चाहिए । यह बड़े ही दुःखकी बात है कि ऐसी शक्तिके धारक पुरुष प्रायः गरीब होते हैं । जिस प्रकार ऐसे पुरुषोंके लिए गरीब होना उनके दुर्भाग्यकी बात है उसी प्रकार देश वासियोंका ऐसे योग्य पुरुषोंकी कदर न करना और भी अधिक दुर्भाग्यकी बात है । ऐसे पुरुष यदि यूरप या अमेरिकामें होते तो वे बहुत कुछ मान-मर्यादा प्राप्त कर धनशाली बन सकते और वहाँकी प्रजा तथा सरकार उन्हें उत्तेजना प्रदान कर उन्नति के विशाल मार्ग में आगे किये बिना नहीं रहती । यहाँ भी ऐसा ही होना चाहिए । और ऐसा होने पर ही ऐसे पुरुषोंकी बढ़वारीकी हम आशा कर सकते हैं । इस बातका भी शोध लगाना चाहिए कि ऐसे पुरुष हिन्दूजातिहीमें क्यों दिखाई पड़ते हैं । इसका क्या कारण है कि मुसलमान, पारसी आदि जातियोंमें ऐसे पुरुष नहीं दिखाई पड़ते । क्या ऐसे पुरुषोंके उत्पन्न होनेके लिए कोई खास जाति ही नियुक्त है या वे वंश-परम्परा पर उतरते हैं ? इन बातोंकी खोज करने पर कोई खास बात अवश्य ज्ञात हो सकेगी और उससे ऐसे पुरुषों के उत्पन्न होनेका कोई नियम जान पड़ेगा कि जिससे उनकी वृद्धि होकर प्रजाको लाभ हो ।"
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मि० मलाबारीके 'इण्डियन स्पेकटेटर' नामके पत्रमें ता० २८ नवम्बर १९०९ के अंकमें लिखा था:
"कच्छ और मोरवीके मध्यवर्ती ववाणिया- निवासी एक युवा, शतावधानी, कवि श्रीमद् राजचन्द्र रवजीभाईका हमें समागम प्राप्त हुआ । इनकी शक्तिको देख कर बड़ा भारी आश्चर्य होता था । श्रीमद् राजचन्द्र
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