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श्रीमद् राजचन्द्र
करुणा- कोमलता आदि गुण रूप प्रथम भूमिका धारण कर शब्दादि विषयोंको रोक दिया है, जिसे संयमके साधनमें प्रेम हैं और संसार जिसे प्रिय नहीं लगता वह महाभाग मनुष्य मध्यम - पात्र है ।
“और जिसे जीनेकी तृष्णा नहीं और मृत्युका क्षोभ नहीं वह आत्ममार्ग-पथिक महा-पात्र है; और वही परम योगी और जित - लोभी है ।
जिस भाँति सिर पर सूर्य के आनेसे छाया मनुष्य में ही समा जाती है उसी भाँति आत्म-स्वभावमें आने पर मन भी आत्मामें ही समा जाता है । "यह सारा संसार मोह-विकल्पसे उत्पन्न होता है; और अन्तर्दृष्टि से देखने पर इसे नष्ट होते भी विलम्ब नहीं लगता ।
"जो सुखका धाम है, सन्त जन जिसे चाहते हैं, और दिनरात उसीके ध्यानमें लीन रहते हैं, जो अत्यन्त शान्त-स्वरूप और अनन्त सुधामय है उस पदको - आत्माको - मेरा प्रणाम है । वह पद सदा जयवंत रहे ।”
अब श्रीमद् राजचंद्रके आध्यात्मिक जीवनके सम्बन्धमें कुछ विशेष कहना नहीं हैं। सिर्फ एक बात और कहनेकी है; और वह यह है कि प्रारंभ में यह कहा जा चुका है कि उनका जीवन इस प्रकारका है कि वह चाहे जितने सादे रूप में चित्रित किया जाये तब भी कुछ लोगों को उसमें अतिशयोक्ति जान पड़ेगी और जिन लोगोंको श्रीमद् राजचंद्रके समागमका लाभ प्राप्त हुआ है उनमें इनकी शक्ति तथा दशाके सम्बन्धमें उलटी आदर-बुद्धि पैदा होगी । बल्कि उनके लिए
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