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________________ १२० श्रीमद् राजचन्द्र परन्तु इस विषयमें अँगरेजीके प्रसिद्ध लेखक बर्कका कहना है कि अभी दुनिया इस विषयके समझनेके लिए पचास वर्ष पीछे है। इस कारण यह नहीं जान पड़ता कि जैनसमाज श्रीमद् राजचंद्रकी शक्तिको शीघ्र पहचान सकेगा। यह देखा जाता है कि समाज में जब कोई ऐसा असाधारण पुरुष उत्पन्न होता है और वह अपने विचारोंको समाजके सामने विशेष विचारशीलता और स्वतंत्रताके साथ रखता है तो समाज उन विचारोंको सहन नहीं करता। इसका कारण यह है कि उसे जान पड़ता है वह व्यक्ति जो कुछ कहता है उसके विचार उससे बिलकुल जुदे हैं । परन्तु यदि ऐसे लोग या समाज जरा विचार-सहिष्णुताके साथ विचार करें तो उन्हें जान पड़ेगा कि वह व्यक्ति उनके विचारोंसे भिन्न कुछ भी नहीं कह रहा है। किन्तु वह इस बातके लिए प्रयत्न करता है कि उनके विचारोंकी उत्तमता लोग किस तरह समझें। कौन कह सकता है कि समाजमें ऐसी बुद्धि कब उत्पन्न होगी जब उसमें रूढ़ि-बद्ध विचारोंकी जगह स्वतंत्र पर पवित्र विचार-वातावरण फैलेगा। इस विषयको समाप्त करते हुए एक अन्तिम बात और कहनी आवश्यक है, जिससे पाठक श्रीमद् राजचंद्रके आत्म-बलका कुछ पता पा सकेंगे। जब वे पूर्ण नीरोग थे तब उनका बजन १३२ पौंड था। बाद वह घटते घटते फिर मात्र ४३-४४ पौंड रह गया था। उनकी आयु जब मात्र ११ दिन की रह गई थी तब उन्होंने जिनमार्गके स्वरूप-वर्णनमें एक कविता लिखी थी। मृत्यु-शय्या पर पड़े हुए इस प्रकारकी कविता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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