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________________ श्रीमद् राजचन्द्र अतएव ऐसी हालतमें उन्हें सर्वथा मोक्ष प्राप्ति बतलाना नहीं बन सकता। इसके सिवाय यदि उनके शास्त्रोंमें जो बातें कही गई हैं उनसे जुदा उनका अभिप्राय हो तो उसका जानना हमारे तुम्हारे लिए कठिन है। और इतने पर भी यह कहा जाय कि बुद्धदेवका अभिप्राय भिन्न था तो इसका यथार्थ कारण बतानेसे वह प्रमाण माना जा सकता है। २१ वाँ प्रश्न–जगत्की अन्तिम स्थिति क्या होगी? । उत्तर-मैं इस बातको नहीं मान सकता कि या तो सब जीव मोक्ष चले जायेंगे या जगत्का सर्वथा नाश हो जायगा । मेरा विश्वास तो यह है कि जैसी जगत्की स्थिति अब तक चली आई है वैसी ही सदा चली जायगी । इस सृष्टिकी स्थिति ऐसी है कि उसके कोई भाव रूपान्तरमें परिणत हो कर नष्ट हो जाते हैं और कोई भाव बढ़ जाते हैं। वे एक क्षेत्रमें बढ़ते हैं तो साथ ही दूसरे क्षेत्रमें घट जाते हैं । इस पर और अधिक गहरा विचार करने पर यह संभव जान पड़ता है कि इस सृष्टिका सर्वथा नाश या प्रलय नहीं बन सकता । परन्तु 'सृष्टि' शब्दका अर्थ इतना ही न करना चाहिए कि 'यही पृथ्वी'। २२ वाँ प्रश्न-इन अनीतियोंमेंसे सुनीति होगी क्या ? उत्तर-इस प्रश्नका उत्तर सुन कर कोई अनीतिमें प्रवृत्ति करना चाहे तो उसे इस उत्तरका लाभ न लेने देना चाहिए । नीति अनीति आदि सभी भाव अनादि हैं; तथापि हम अनीति छोड़ कर नीति स्वीकार करें तो वह स्वीकार की जा सकती है, और यही आत्माका कर्तव्य भी है। यह नहीं कहा जा सकता कि सब जीव अनीति छोड़ देंगे और सर्वत्र नीतिका प्रचार हो जायगा; क्योंकि सर्वथा ऐसी स्थिति नहीं हो सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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