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________________ स्तुतिविधा कुछ पद्य चक्राकृतिके रूप में अक्षर विन्यासको लिये हुए हैं और इससे उनके कोई कोई अक्षर चक्रमें एक बार लिखे जाकर भी अनेक बार पढ़ने में आते हैं । उनमें से कुछ में यह भी खूबी है कि चक्र के गर्भवृत्तमे लिखा जानेवाला जो आदि अक्षर है वह चक्रकी चार महादिशाओं में स्थित चारों आरोंके अन्त में भी पड़ता है । १११ और ११२ नम्बर के पद्यों में तो वह खूबी और भी बढ़ी चढ़ी है। उनकी छह आरों और नव वलयोंवाली चक्ररचना करनेपर गर्भमें अथवा केन्द्रवृत्त में स्थित जो एक अक्षर (न या र) हैं वही छहों आरोंके प्रथम चतुर्थ तथा सप्तम वलय में भी पड़ता है, और इसलिए चक्र में १६ बार लिखा जाकर २८ बार पढ़ा जाता है । पद्य में भी वह दो दो अक्षरों के अन्तराल से २८ बार प्रयुक्त हुआ है। इनके सिवाय, कुछ चक्रवृत्त ऐसे भी है जिनमे आदि अक्षरको गर्भमें नहीं रक्खा गया बल्कि गर्भ में वह अक्षर रक्खा गया है जो प्रथम तीन चरणों में से प्रत्येकके मध्य में प्रयुक्त हुआ हैं । इन्हीं में कवि और काव्य के नामोंको अङ्कित करनेवाला ११६वाँ चक्रवृत्त है । अनेक पद्य ग्रन्थ में ऐसे हैं जो एकसे अधिक अलङ्कारों को साथ में लिये हुए हैं, जिसका एक नमूना ८४ वाँ श्लोक है, जो आठ प्रकारके चित्रालंकारोंसे अलंकृत है । यह श्लोक अपनी चित्ररचना पर से सब ओर से समानरूपमें पढ़ा जाता है । कितने ही पद्य ग्रन्थ में ऐसे है जो दो-दो अक्षरोंसे बने हैं १. देखो, श्लोक २६, ५३, ५४ ६ । २. देखो, श्लोक २२, २३, २४ । ३. देखो, पद्य नं० ११०, ११३, ११४, ११५, ११६ । ४. देखो पृष्ठ नं० १०३, १०४ का फुटनोट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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