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के अनुसार यह आयु भी सम्भव नहीं जंचती है। दूसरी बात यह भी है कि दस वर्ष ग्रहण करना उचित नहीं । सायणाचार्य ने युग की इस समस्या को सुलझाने के लिए “दशयुगपर्यन्तं जीवन् उक्तरूपेण पुरुषार्थसाधकोऽभवत् अथवा जीवन् उत्तररूपेण पुरुषार्थसाधकोऽभवत् ।" इस प्रकार की व्याख्या की है। इस व्याख्या से युग-प्रमाण की समस्या सरलता से सुलझ जाती है अर्थात् दीर्घतम ने अश्विन के प्रभाव से दुख से छुटकारा पाकर जीवन के अवशेष दस युग–५० वर्ष सुख से बिताये थे। अतएव इस आख्यायिका से स्पष्ट है कि उदयकाल में युग का मान पांच वर्ष लिया जाता था। ऋग्वेद के अन्य दो मन्त्रों से युग शब्द का अर्थ काल और अहोरात्र भी सिद्ध होता है। पांचवें मण्डल के ७३वें सूक्त के ३रे मन्त्र में "नहुषा युगा मन्हा रजांसि दीययः।" पद में युग शब्द का अर्थ-युगोपलक्षितान् काठान् प्रसरादिसवनान् अहोरात्रादिकालान् वा" किया गया है । इससे स्पष्ट है कि उदयकाल में युग शब्द का अन्य अर्थ अहोरात्र विशिष्ट काल भी लिया जाता था। ऋग्वेद ६ठे मण्डल के ९वें सूक्त के ४थे मन्त्र में युगे युगे विदथ्यं" पद में युग-युगे शब्द का अर्थ 'काले-काले' किया गया है । वाजसनेयी संहिता के १२वें अध्ययाय की १११वीं कण्डिका "दैव्यं मानुषा युगा" ऐसा पद आया है। इससे सिद्ध होता है कि उस काल में देव-युग और मनुष्य-युग ये दो युग प्रचलित थे । तैत्तिरीय संहिता के "या जाता भो अधयो देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा" मन्त्र से देव-युग की सिद्धि होती है।
ठाणांग में पाँच वर्ष का एक युग बताया गया है। इसमें ज्योतिष की दृष्टि से युग की अच्छी मीमांसा की गयी है । एक स्थान पर बताया गया है कि
पंच संवच्छरा प० तं० णक्खत्तसंवच्छरे, जुगसंवच्छरे, पमाणसंवच्छरे, लक्खणसंवच्छरे, सणिचरसंवच्छरे । जगसंवच्छरे पंचविहे प० त० चंदे-चंदे. अमिवढिए चंदे अभिवविए चेव । पमाणसंवच्छरे पंचविहे प० तं० णक्खत्ते, चंदे, उऊ अइच्चे, अभिवढिए।-ठा. ५, उ. ३, सू. १० अर्थात्-पंचसंवत्सरात्मक युग के ५ भेद हैं-नक्षत्र, युग, प्रमाण, लक्षण और शनि । युग के भी पांच भेद बताये गये है-चन्द्र, चन्द्र, अभिवद्धित, चन्द्र और अभिवद्धित ।
समवायांग में युग के सम्बन्ध में बहुत स्पष्ट और सुन्दर ढंग से बताया गया हैपंच संवच्छरियस्सणं जुगस्स रिउमासेणं मिज्जमाणस्स एगसटिं उऊमासा प० ।
-स. ६१, सू. १ अर्थात्-पंचवर्षात्मक एक युग होता है । इस युग के पाँच वर्षों के नाम चन्द्र, चन्द्र, अभिवद्धित, चन्द्र और अभिवद्धित बताये गये हैं। पंचवर्षात्मक युग में ६१ ऋतुमास होते हैं।
प्रश्न-व्याकरणांग में भी युग-प्रक्रिया का विवेचन किया गया है। इसमें एक युग के दिन और पक्षों का निरूपण किया है।
प्रथमाध्याय
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