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________________ मधुश्च माधवश्च वासन्तिकावृत् शुक्रइच शुचिश्च प्रेमावृत् नमश्च नमस्यश्च वार्षिकावृत् इषश्चोजश्च शारदाधुत् सहश्च सहस्यश्च हैमन्तिकावृतू तपश्च तपस्यश्च शौशिरावृत् । -तै. सं. ४. ४. ११ __अर्थात्-मधु और माधव वसन्त ऋतु, शुक्र और शुचि ग्रीष्म ऋतु, नभस् और नभस्य वर्षा ऋतु, इष और ऊर्ज शरद् ऋतु, सहस और सहस्य हेमन्त ऋतु एवं तपस और तपस्य शिशिर ऋतुवाले मास हैं । ऋग्वेद में ऋतु शब्द कई स्थानों पर आया है पर वहाँ इस शब्द का प्रयोग वर्ष के अर्थ में हुआ है। ऐतरेय ब्राह्मण में पांच ही ऋतु आयी हैं। उसमें हेमन्त और शिशिर इन दोनों को एक ही रूप में माना है द्वादशमासाः पञ्चर्तयो हेमन्तशिशिरयोः समासेन । -ऐ. ब्रा. १. , तैत्तिरीय ब्राह्मण में ऋतुओं का उल्लेख करते हुए बताया गया है तस्य ते वसन्तः शिरः । ग्रीष्मो दक्षिणः पक्षः। वर्षाः पुच्छम् । शर त्तरः पक्षः । हेमन्तो मध्यम् । -ते. प्रा. ३. १०.४.१ अर्थात्-वर्ष का सिर वसन्त, दाहिना पंख ग्रीष्म, बायाँ पंख शरद्, पूंछ वर्षा और हेमन्त को मध्य भाग कहा गया है। तात्पर्य यह है कि तैत्तिरीय ब्राह्मण काल में वर्ष को पक्षी के रूप में माना गया है और ऋतुओं को उसका विभिन्न अंग बतलाया है। तैत्तिरीय संहिता में ऋतु का एक पात्र रूप में वर्णन करते हुए बताया गया है किउमयतो मुख मृतुपात्रं भवति को हि तद्वेद यदृत्तूनां मुखम् । -ते. सं ६. ५. ३ तात्पर्य यह है कि ऋतु पात्र के दोनों ओर मुख रहते हैं। लेकिन इन मुखों की दिशा का ज्ञान करना कठिन है । ऋतु की स्थिति सूर्य पर निर्भर है। एक वर्ष में सौरमास का आरम्भ चान्द्रमास के आरम्भ के साथ ही होता है। प्रथम वर्ष के सौरमास का आरम्भ शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को और आगे आनेवाले तीसरे वर्ष में सौरमास का आरम्भ कृष्णपक्ष की अष्टमी को बताया गया है । सारोश यह है कि सर्वदा सौरमास और चान्द्रमास का आरम्भ एक तिथि को न होने के कारण ऋतु आरम्भ की तिथि अनियमित है। पूर्व वैदिक युग में वर्षा ऋतु का आरम्भ निरयन मृगशिर नक्षत्र के आरम्भ के कुछ पूर्व या उत्तर माना जाता था। शतपथ ब्राह्मण में निम्न आख्यायिका आयी है, जिससे ऋतु के सम्बन्ध में सुन्दर प्रकाश मिलता है। प्रजापतेर्ह वै प्रजाः ससृजनास्थ पर्वाणि विसस्न सु स स वै संवत्सर एव प्रजापतिस्तस्यैतानि पर्वाण्यहोरात्रयोः सन्धी पौर्णमासी चामावास्या चतुर्मुखानि ॥३५॥ स विस्वस्तैः पर्वभिः न शशाक सँ हातुं तमेहविर्यशैर्देवा अमिषज्यन्नग्निहोत्रेणैवाहोरात्रयोः सन्धी तत्पर्वामिषज्यस्तत्समदधुः पौर्णमासेन चैवामावास्येन च पौर्णमासी प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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