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गुरु या शुक्र की उसपर दृष्टि अथवा शुभग्रह ११वें भाव में हों तो भी चोरी गया धन मिल जाता है।
प्रश्नकाल में जो ग्रह केन्द्र में हो उसकी दिशा में चोरी की वस्तु को कहना चाहिए। यदि केन्द्र में दो या बहुत से ग्रह हों तो उनमें से जो बली हो उस ग्रह की दिशा में नष्टधन कहना चाहिए। यदि केन्द्र में ग्रह नहीं हो तो लग्न राशि की दिशा में चोरी गयी वस्तु बतलानी चाहिए ।
सप्तम स्थान में शुभग्रह हो या लग्नेश सप्तम स्थान में बैठा हो अथवा क्षीण चन्द्रमा सप्तम भवन में हो तो चोरी गयी या भूली हुई वस्तु मिलती नहीं है। सप्तमेश और चन्द्रमा सूर्य के साथ स्थित हों तो चोरी गयी वस्तु मिलती नहीं । ३१५७।११वें स्थान में शुभग्रह हों तो प्रश्नकर्ता का धन मिल जाता है।
__ लग्न पर सूर्य, चन्द्रमा की दृष्टि हो तो आत्मीय चोर होता है; लग्नेश और सप्तमेश लग्न में हों तो कुटुम्ब का व्यक्ति चोर होता है। सप्तमेश २।१२वें स्थान में हो तो नौकर चोर होता है। मेष प्रश्न लग्न हो तो ब्राह्मण चोर, वृष हो तो क्षत्रिय चोर, मिथुन लग्न हो तो वैश्य चोर, कर्क लग्न हो तो शूद्र चोर, सिंह लग्न हो तो अन्त्यज चोर, कन्या लग्न हो तो स्त्री चोर, तुला लग्न हो तो पुत्र, भाई या मित्र चोर, वृश्चिक हो तो नौकर, धनु हो तो स्त्री या भाई चोर, मकर हो तो वैश्य, कुम्भ हो तो मनुष्येतर प्राणी चूहा आदि और मीन हो तो ऐसे ही भूली हुई समझना चाहिए।
चर प्रश्न लग्न हो तो दो अक्षर के नामवाला चोर, स्थिर हो तो चार अक्षर के नामवाला चोर और द्विस्वभाव लग्न हो तो तीन अक्षर के नामवाला चोर होता है।
ज्योतिष में एक सिद्धान्त यह भी बताया गया है कि प्रश्नलग्न चर हो तो चोर के नाम का पहला अक्षर संयुक्त होता है, जैसे द्वारिका, बजरत्न आदि । स्थिर लग्न हो तो कृदन्त--पदसंज्ञक वर्ण चोर के नाम का प्रथम अक्षर होता है, जैसे मंगलसेन, भवानी शंकर इत्यादि । द्विस्वभाव लग्न हो तो स्वरवर्ण चोर के नाम का प्रथम अक्षर होता है, जैसे ईश्वरीप्रसाद, उजागरसिंह, उग्रसेन इत्यादि । चोर का विशेष स्वरूप लग्न के द्रेष्काण के अनुसार जानना चाहिए । प्रश्नलग्नानुसार चोर और चोरी की वस्तु का विचार
मेषलग्न में वस्तु चोरी गयी हो अथवा प्रश्नकाल में लग्न हो तो चोरी की वस्तु पूर्व दिशा में समझनी चाहिए। चोर ब्राह्मण जाति का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से आरम्भ होता है । नाम में दो या तीन ही अक्षर होते हैं।
वृषलग्न में वस्तु चोरी गयी हो अथवा प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी की वस्तु पुर्व दिशा में समझनी चाहिए। चोरी करनेवाला व्यक्ति क्षत्रिय जाति का होता है और उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों का रहता है ।
१. देखें, बृहज्जातक का द्रेष्काणाध्याय ।
भारतीय ज्योतिष
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