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तो रक्तपित्त, बुध हो तो सन्निपात, राहु से युक्त सूर्य आठवें में हो तो कुष्ट, राहु से युक्त शनि आठवें में हो तो वायुविकार एवं चन्द्रमा और शुक्र आठवें में हो तो सन्निपात होता है।
लग्नेश बलवान् और अष्टमेश निर्बल हो तो रोगी का रोग जल्दी अच्छा हो जाता है । नक्षत्रानुसार रोगी के रोग की अवधि का ज्ञान
स्वाति, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी, आर्द्रा और आश्लेषा में जिस व्यक्ति को रोग हो उसकी मृत्यु होती है । रेवती और अनुराधा में रोग हो तो रोग अधिक दिन तक जाता है; भरणी, श्रवण, शतभिषा और चित्रा में रोग हो तो ११ दिन तक रोग; विशाखा, हस्त और धनिष्ठा में हो तो १५ दिन तक रोग; मूल, कृत्तिका और अश्विनी में हो तो ९ दिन तक; मघा में हो तो ७ दिन तक रोग; मृगशिरा और उत्तराषाढ़ा में हो तो एक महीना रोग रहता है। भरणी, आश्लेषा, मूल, कृत्तिका, विशाखा, आर्द्रा और मघा नक्षत्र में किसी को सर्प काटे तो उसकी मृत्यु होती है । शीघ्र मृत्यु योग
___आर्द्रा, आश्लेषा, ज्येष्ठा, शतभिषा, भरणी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा, धनिष्ठा और कृत्तिका नक्षत्र, रवि, मंगल और शनि ये वार एवं चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी, एकादशी और षष्ठी इन तिथियों के योग में रोगग्रस्त होनेवाले व्यक्ति को मृत्यु होती है। चोरज्ञान
प्रश्नलग्न स्थिर राशि हो या स्थिर राशि के नवमांश में प्रश्नलग्न हो अथवा अपने वर्गोत्तम नवमांश की प्रश्नलग्न राशि हो तो बन्धु, स्वजातीय, उच्चजातीय व्यक्ति या दास को चोर समझना चाहिए ।
प्रश्नलग्न प्रथम द्रेष्काण में हो तो चोरी गयी चीज़ घर के द्वार के पास; द्वितीय द्रेष्काण में हो तो घर के मध्य में और तृतीय द्रेष्काण में हो तो घर के पीछे के भाग में होती है।
लग्न में पूर्ण चन्द्र हो और उसके ऊपर गुरु की दृष्टि हो तथा शीर्षोदय राशि ३।५।६।७।८।११ लग्न में हों तथा लग्न में बलवान् और शुभग्रह स्थित हों और लग्नेश, सप्तमेश, दशमेश, लाभेश, बलवान् चन्द्रमा परस्पर मित्र हों या इत्थशाल आदि शुभ योग करते हों तो चोरी गयी वस्तु की पुनः प्राप्ति हो जाती है।
बली या पूर्ण चन्द्र लग्न में, शुभग्रह शीर्षोदय या एकादश में हों तथा शुभग्रह से युत या दृष्ट हों तो नष्टधन-चोरी गया धन मिल जाता है। पूर्ण चन्द्र लग्न में हो, पंचम अध्याय
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