________________
शल्य शोधन
गृहनिर्माण की भूमि को शुद्ध कर लेना आवश्यक है। अतः सर्वप्रथम उस भूमि-गृहनिर्माणवाली भूमि से शल्य-हड्डी को निकालकर बाहर कर देना चाहिए । शल्य अवगत करने की विधि ज्योतिष शास्त्र में कई प्रकार से बतलायी गयी है । गृहनिर्माण करनेवाला व्यक्ति जब सामने आये और प्रश्न करे तो उसके प्रश्नाक्षरों की संख्या को दूर कर लेना चाहिए। मात्राओं को चार से गुणा कर पूर्वोक्त गुणनफल में जोड़ देना चाहिए। इस योगफल में नौ का भाग देने से विषम शेष ११३१५७ रहे तो शल्य-हड्डी भूमि में रहती है और सम शेष २।४।६।८ रहे तो भूमि निःशल्यअस्थि-रहित होती है। प्रश्नाक्षरों के लिए पुष्प, देव, नदी एवं फल का नाम पूछना चाहिए।
शल्य का अस्तित्व रहने पर, यदि प्रश्नाक्षरों में पहला अक्षर व हो तो शल्य पूर्व भाग में होता है। पूर्व भाग में भी नौवां भाग समझना चाहिए। इस भूमि में डेढ़ हाथ खोदने से मनुष्य की अस्थि प्राप्त होती है। कवर्ग के अन्तर रहने से अग्निकोण में दो हाथ नीचे गधे की अस्थि निकलती है। चवर्ग के अक्षर रहने पर दक्षिण में कमर-भर भूमि खोदने पर मनुष्य का शल्य रहता है। तवर्ग के प्रश्नाक्षर होने से नैऋत्य कोण में कुत्ता का शल्य डेढ़ हाथ नीचे निकलता है। स्वर वर्ण प्रश्नाक्षर होने पर पश्चिम भाग में डेढ़ हाथ नीचे बच्चे की अस्थि निकलती है। ह प्रश्नाक्षर रहने पर वायव्य कोण में चार हाथ नीचे खोदने पर केश, कपाल, अस्थि, रोम आदि पदार्थ निकलते हैं। श प्रश्नाक्षर होने से उत्तर भाग में एक हाथ नीचे खोदने से ब्राह्मण का शल्य उपलब्ध होता है। पवर्ग के प्रश्नाक्षर होने से ईशान कोण में डेढ़ हाथ नीचे खोदने पर गाय की अस्थियाँ मिलती हैं। य प्रश्नाक्षर होने पर मध्य भाग में छाती-भर जमीन खोदने पर भस्म, लोहा, कपास आदि पदार्थ मिलते हैं। मतान्तर से ह य प वर्ण प्रश्नाक्षर होने से मध्य भाग में शल्य उपलब्ध होता है ।
शल्योद्धार के सम्बन्ध में विशेष जानकारी अहिबल चक्र के द्वारा प्राप्त करनी चाहिए। भूमि की श्रेष्ठता अवगत करने के लिए सन्ध्या समय एक हाथ लम्बा, चौड़ा और गहरा गड्ढा खोदकर जल से भर देना चाहिए। प्रातःकाल उस गड्ढे में जल शेष रह जाये तो शुभ, निर्जल चौकोर भूमि दिखाई पड़े तो मध्यम और निर्जल फटा हुआ गड्ढा मिले तो जमीन को अशुभ समझना चाहिए। इस विधि को देश-काल के अनुसार ही प्रयोग में लाना श्रेयस्कर होता है ।
पंचम अध्याय
४८१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org