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चन्द्रबल विचार
चन्द्रमा वर और कन्या की राशि से तीसरा, छठा, सातवां, दसवीं, ग्यारहवाँ शुभ, पहला, दूसरा, पाँचवां, नौवाँ दान देने से शुभ और चौथा, आठवाँ, बारहवाँ अशुभ होता है ।
विवाह में अन्धादि लग्न
दिन में तुला और वृश्चिक रात्रि में तुला और मकर बधिर हैं । तथा दिन में सिंह, मेष, वृष और रात्रि में कन्या, मिथुन, कर्क अन्ध संज्ञक हैं । दिन में कुम्भ और रात्रि में मीन दो लग्न पंगु होते हैं । किसी-किसी आचार्य के मत से धनु, तुला, वृश्चिक ये अपराह्न में बधिर हैं; मिथुन, कर्क, कन्या ये लग्न रात्रि में अन्धे हैं; सिंह, मेष, वृष ये लग्न दिन में अन्धे हैं और मकर, कुम्भ, मीन ये लग्न प्रातःकाल तथा सायंकाल में बड़े होते हैं ।
अन्यादि लग्नों का फल
यदि विवाह बधिर लग्न में हो तो वर-कन्या दरिद्र; दिवान्ध लग्न में हो तो कन्या विधवा; रात्र्यन्ध लग्न में हो तो सन्तति मरण और पंगु में हो तो धन-नाश होता है ।
विवाह के शुभ लग्न
तुला, मिथुन, कन्या, वृष एवं धनु लग्न शुभ हैं, अन्य लग्न मध्यम हैं ।
लग्न शुद्धि
लग्न से बारहवें शनि, दसवें मंगल, तीसरे शुक्र, लग्न में चन्द्रमा और क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते । लग्नेश, शुक्र, चन्द्रमा छठे और आठवें में शुभ नहीं होते । लग्नेश और सौम्य ग्रह आठवें में अच्छे नहीं होते हैं और सातवें में कोई भी ग्रह शुभ नहीं
होता है ।
ग्रहों का बल
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प्रथम, चौथे, पांचवें, नवें और दसवें स्थान में स्थित बृहस्पति सब दोषों को नष्ट स्थित तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम लग्न में स्थित नवांश चौथे, पांचवें, नवें और दसवें स्थान में हो तो सौ इन्हीं स्थानों में हो तो दो सौ दोषों को दूर करता स्थित हो तो एक लाख दोषों को दूर करता है । स्वामी यदि लग्न, चौथे, दसवें, ग्यारहवें स्थान में भस्म कर देता है ।
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करता है । सूर्यं ग्यारहवें स्थान में दोषों को नष्ट करता है बुध लग्न, दोषों को दूर करता है । यदि शुक्र है । यदि इन्हीं स्थानों में बृहस्पति लग्न का स्वामी अथवा नवांश का स्थित हो तो अनेक दोषों को शीघ्र
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भारतीय ज्योतिष
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