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विद्यारम्भ का मुहूर्त
मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, अश्विनी, मूल, तीनों पूर्वा ( पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाफाल्गुनी ), पुष्य, आश्लेषा इन नक्षत्रों में; रवि, गुरु, शुक्र इन वारों में; षष्ठी, पंचमी, तृतीया, एकादशी, द्वादशी, दशमी, द्वितीया इन तिथियों में और लग्न से नवें, पांचवें, पहले, चौथे, सातवें, दसवें स्थान में शुभग्रहों के रहने पर विद्यारम्भ करना शुभ है । किसी-किसी आचार्य के मत से तीनों उत्तरा, रेवती और अनुराधा में भी विद्यारम्भ करना शुभ कहा गया है । वाग्दान महत
उत्तराषाढ़ा, स्वाति, श्रवण, तीनों पूर्वा, अनुराधा, धनिष्ठा, कृत्तिका, रोहिणी, रेवती, मूल, मृगशिरा, मघा, हस्त, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों में वाग्दान करना शुभ है। विवाह मुहूर्त
मूल, अनुराधा, मृगशिर, रैवती, हस्त, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, स्वाति, मघा, रोहिणी इन नक्षत्रों में और ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष, आषाढ़ इन महीनों में विवाह करना शुभ है ।
विवाह में कन्या के लिए गुरुबल, वर के लिए सूर्यबल और दोनों के लिए चन्द्रबल का विचार करना चाहिए ।
प्रत्येक पंचांग में विवाह के मुहूर्त लिखे रहते हैं। इनमें शुभ-सूचक खड़ी रेखाएँ और अशुभ-सूचक टेढ़ी रेखाएँ होती हैं। ज्योतिष में दस दोष बताये गये हैं, जिस विवाह के मुहूर्त में जितने दोष नहीं होते हैं, उतनी ही खड़ी रेखाएँ होती हैं
और दोषसूचक टेढ़ी रेखाएँ मानी जाती हैं। सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त दस रेखाओं का होता है, मध्यम सात-आठ रेखाओं का और जघन्य पाँच रेखाओं का होता है। इससे कम रेखाओं के मुहूर्त को निन्द्य कहते हैं । गुरुबल विचार
बृहस्पति कन्या की राशि से नवम, पंचम, एकादश, द्वितीय और सप्तम राशि में शुभ; दशम, तृतीय, षष्ठ और प्रथम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश राशि में अशुभ होता है । सूर्यबल विचार
सूर्य वर की राशि से तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश राशि में शुभ; प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश राशि में अशुभ होता है।
पंचम अध्याय
४.१.
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