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जातकर्म और नामकर्म मुहूर्त
____ यदि किसी कारणवश जन्म-काल में जातकर्म नहीं किया गया हो तो अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पौर्णमासी, सूर्यसंक्रान्ति तथा चतुर्थी और नवमी छोड़ अन्य तिथियों में; सोम, बुध, गुरु और शुक्र इन वारों में; जन्मकाल से ग्यारहवें या बारहवें दिन में; मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में जातकर्म और नामकर्म करना शुभ है। जैन मान्यता के अनुसार नामकर्म जन्मदिन से ४५ दिन तक किया जा सकता है। दोलारोहण मुहूर्त
रेवती, मृगशिर, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित्, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद और रोहिणी इन नक्षत्रों में तथा सोम, बुध, गुरु और शुक्र इन वारों में पहले-पहल बालक को पालने में झुलाना शुभ है। भूम्युपवेशन मुहूर्त
रोहिणी, मृगशिर, ज्येष्ठा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद इन नक्षत्रों में; चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी को छोड़ शेष तिथियों में एवं सोम, बुध, गुरु और शुक्र इन वारों में बालक को भूमि पर बैठाना शुभ है। बालक को बाहर निकालने का मुहूर्त
अश्विनी, मृगशिर, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती इन नक्षत्रों में; द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी इन तिथियों में एवं सोम, बुध, शुक्र और रवि इन वारों में बालक को पहले-पहल घर से बाहर निकालना शुभ है। अन्नप्राशन मुहूर्त
चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी, प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी, अष्टमी, अमावस्या और द्वादशी तिथि को छोड़ अन्य तिथियों में; जन्मराशि अथवा जन्मलग्न से आठवीं राशि, आठवां नवांश, मीन, मेष और वृश्चिक को छोड़ अन्य लग्नों में; तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित्, स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र में; छठे मास से लेकर सम मास में अर्थात् छठे, आठवें, दशवें इत्यादि मासों में बालकों का और पांचवें मास से लेकर विषम मासों में अर्थात् पाँचवें, सातवें, नवें इत्यादि मासों में कन्याओं का अन्नप्राशन शुभ होता है । परन्तु अन्नप्राशन शुक्लपक्ष में दोपहर के पूर्व करना चाहिए।
मारतीय ज्योतिष
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