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वर
ब्राह्मण वर्ण
जलचर वश्य
चतुर्थी तारा गजयोनि
गुण
~~~ = •,
२
१ ॥
राशीश बृहस्पति देवगण
मीन राशि ( भकूट ) अन्त्य नाड़ी
प्राप्त हुए । किन्तु कम से
इस प्रकार कुल १४ गुण वश्यक था । अतः गुणों की दृष्टि से कुण्डली नहीं मिली ।
मुहूर्त विचार
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कन्या क्षत्रिय वर्ण
चतुष्पद वश्य सातवीं तारा सर्पयोनि
राशीश शुक्र
राक्षसगण
वृषराशि ( भकूट ) अन्त्य नाड़ी
प्राचीन काल से ही प्रत्येक मांगलिक कार्य के लिए शुभ समय का विचार किया जाता रहा है । क्योंकि समय का प्रभाव जड़ और चेतन सभी प्रकार के पदार्थों पर पड़ता है, इसीलिए हमारे आचार्यों ने गर्भाधानादि अन्यान्य संस्कार एवं प्रतिष्ठा, गृहारम्भ, गृहप्रवेश, यात्रा आदि सभी मांगलिक कार्यों के लिए मुहूर्त का आश्रय लेना आवश्यक बतलाया है । अतएव नीचे प्रमुख आवश्यक मुहूर्त दिये जाते हैं ।
कम १८ गुण होना परमा
सूतिका स्नान मुहूर्त
रेवती, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिर, हस्त, स्वाति, अश्विनी और अनुराधा इन नक्षत्रों में; रवि, मंगल और बृहस्पति इन वारों में प्रसूता स्त्री को स्नान कराना शुभ है। आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, श्रवण, मघा, भरणी, विशाखा, कृत्तिका, मूल और चित्रा इन नक्षत्रों में, बुध और शनि इन वारों में एवं अष्टमी, षष्ठी, द्वादशी, चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी इन तिथियों में प्रसूता स्त्री को स्नान कराना वर्जित है ।
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विशेष – प्रत्येक शुभ कार्य में व्यतीपात योग, भद्रा, वैधृति नामक योग क्षयतिथि, वृद्धितिथि, क्षयमास, अधिकमास, कुलिक, अर्द्धयाम, महापात, विष्कम्भ और वज्र के आदि की तीन-तीन घटियाँ, परिघ योग का पूर्वार्द्ध, शूलयोग की पाँच घटियाँ, गण्ड और अतिगण्ड की छह-छह घटियाँ एवं व्याघात योग की नौ घटियां त्याज्य हैं ।
स्तन-पान मुहूर्त
अश्विनी, रोहिणी, पुष्य, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद और रेवती इन नक्षत्रों; सोम, बुध, गुरु और शुक्र इन वारों में तथा शुभ लग्नों में स्तनपान कराना चाहिए ।
चम अय
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