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जिन-जिन राशियों में बैठे हों, उन राशियों में से कोई भी राशि कन्या की जन्मराशि हो तो दम्पति में अपूर्व प्रेम रहता है ।
८--जिन कन्याओं की जन्मराशि वृष, सिह, कन्या या वृश्चिक होती है, उनको सन्तान कम उत्पन्न होती है।
९-यदि पुरुष की जन्मकुण्डली की षष्ठ और अष्टम स्थान की राशि कन्या की जन्मराशि हो तो दम्पति में परस्पर कलह होता है।
१०-वर-कन्या के जन्मलग्न और जन्मराशि के तत्त्वों का विचार करना चाहिए। यदि दोनों की राशियों के एक ही तत्त्व हों तो मित्रता होती है। अभिप्राय यह है कि कन्या की जन्मराशि या जन्मलग्न जलतत्त्ववाली हो और वर की जन्मराशि या जन्मलग्न जल या पृथ्वीतत्त्ववाली हो तो मित्रता और प्रेम समझना चाहिए । तत्त्वों की मित्रता निम्न प्रकार है ।
पृथ्वीतत्त्व की मित्रता जलतत्त्व के साथ, अग्नितत्त्व की मित्रता वायुतत्त्व के साथ तथा पृथ्वीतत्त्व की अग्नितत्त्व के साथ, जलतत्त्व की अग्नितत्त्व के साथ और जलतत्त्व की वायुतत्त्व के साथ शत्रुता होती है। तत्त्व के इस विचार को जन्मलग्न और जन्मराशि के साथ अवश्य देख लेना चाहिए ।
११-वर-कन्या के लग्नेश और राशीशों के तत्त्वों की मित्रता भी देख लेनी चाहिए। यदि दोनों के लग्नेश एक ही तत्त्व या मित्रतत्त्व के हों अथवा दोनों राशीश भी लग्नेश के समान एक ही तत्त्व या मित्रतत्त्व के हों तो दाम्पत्य जीवन दोनों का सुख-शान्तिपूर्वक व्यतीत होता है। अन्यथा कलह, झगड़ा और अशान्ति रहती है।
१२-वर और कन्या की कुण्डली में सन्तान भाव का विचार अवश्य करना चाहिए । सन्तान योग तृतीय अध्याय में बताये गये हैं।
ज्योतिष में लग्न को शरीर और चन्द्रमा को मन माना गया है। प्रेम मन से होता है, शरीर से नहीं। इसीलिए आचार्यों ने जन्मराशि से मेलापक विधि का ज्ञान करना बताया है। गुण मिलान द्वारा वर और कन्या की प्रजनन शक्ति, स्वास्थ्य, विद्या एवं आर्थिक परिस्थिति का ज्ञान करना चाहिए। इस गुण मिलान-पद्धति में निम्न बातें होती है-(१) वर्ण (२) वश्य (३) तारा (४) योनि (५) ग्रहमैत्री (६) गणमैत्री (७) भकूट और (८) नाड़ी। इनमें एक-एक अधिक गुण माने गये हैं। अर्थात् वर्ण का १, वश्य का २, तारा का ३, योनि का ४, ग्रहमैत्री का ५, गणमैत्री का ६, भकूट का ७ और नाड़ी का ८ गुण होता है । इस प्रकार कुल ३६ गुण होते हैं। इसमें कम से कम १८ गुण मिलने पर विवाह किया जा सकता है, परन्तु नाड़ी और भकूट के गुण अवश्य होने चाहिए। इनके गुण बिना १८ गुणों में विवाह मंगलकारी नहीं माना जाता है ।
१. ग्रह और राशियों के तत्त्व तृतीय अध्याय में लिखे गये हैं।
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