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स्वामी, ( ३ ) वर्ष का मुन्थेश, (४) त्रिराशिप एवं (५) वर्षप्रवेश दिन में हो तो वर्ष-कुण्डली की सूर्याधिष्ठित राशि का स्वामी और रात में वर्षप्रवेश हो तो वर्ष-कुण्डली की चन्द्राधिष्ठित राशि का स्वामी ।
वर्ष-कुण्डली बनाने के लिए सर्वप्रथम वर्षेष्टकाल का साधन करना चाहिए । ज्योतिष ग्रन्थों में बताया है कि अभीष्ट संवत् में से जन्म संवत् को घटाने से गतवर्ष आते हैं । गतवर्ष की संख्या जितनी हो उसमें उसका चौथाई भाग एक स्थान में जोड़ दे और दूसरी जगह गतवर्ष संख्या को २१ से गुणा करे, गुणनफल में ४० का भाग देने से जो घट्यात्मक लब्धि आवे उसमें जन्म समय के वार आदि इष्टकाल को जोड़कर ७ का भाग देने पर शेष तुल्य वार आदि वर्षेष्टकाल होता है ।
उदाहरण-जन्म सं. १९६९ में कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, १२ तिथि, गुरुवार को इष्टकाल १० घटी १२ पल पर हुआ है। इस दिन सूर्यस्पष्ट ७।५।४१३४१ है। इस जन्मपत्रीवाले का वर्षपत्र बनाना है अतः२००३ वर्तमान संवत् में से १९६९ जन्म संवत् को घटाया
३४ गतवर्ष हुए, इनका चौथाई भाग%
३४ : ४ = ८३ - ८१४६ = ८।३० गत वर्ष का चतुर्थांश ३४ गतवर्ष + ८.३० गतवर्ष का चतुर्थांश = ४२।३० दुसरे स्थान में-३४४ २१ = ७१४:४० = १७१५१
४२।३० और १७१५१ को जोड़ा तो = ४२।४७१५१ ५।१०।१२ जन्म समय के वारादि
४७।५८।३७ = ६ लब्धि, ५।५८।३ शेष । यहाँ लब्धि को छोड़ शेष मात्र की वर्षप्रवेशकालीन वारादि इष्टकाल समझना चाहए; अर्थात् बृहस्पतिवार को ५८ घटी ३ पल इष्टकाल पर वर्षप्रवेश हुआ माना जायेगा।
सारणी द्वारा वर्षप्रवेशकालीन वारादि इष्टकाल निकालने की विधि आगेवाली वर्ष-सारिणी में से गतवर्ष के नीचे लिखे गये वारादि को लेकर उसमें जन्मसमय के वारादि को जोड़ देना चाहिए। यदि वार स्थान में ७ से अधिक आवे तो उसमें ७ का भाग देकर शेष को वार स्थान में ग्रहण करना चाहिए ।
उदाहरण-गतवर्ष संख्या ३४ है, इसके नीचे ०।४७१५११० लिखा है, इसमें जन्मसमय को वारादि संख्या ५।१०।१२ को जोड़ दिया तो४०२
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