SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्याय ताजिक ( वर्षफल -निर्माण-विधि ) वर्षपत्र बनाने की प्रक्रिया ताजिक शास्त्र में बतलायी गयी है । इस शास्त्र का प्रचार भारत में यवनों के सम्पर्क से हुआ है । प्राचीन भारतवर्ष में वर्षपत्र जातक ग्रन्थों के आधार पर विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी आदि दशाओं के समय-विभागानुसार बनाया जाता था । जातक अंग के विकास क्रम पर ध्यान देने से ज्ञात होगा कि पहले-पहल जो ग्रह जन्मकुण्डली के जिस भावस्थान में पड़ जाता था उसी के शुभाशुभ फल के अनुसार उस भाव का फल माना जाता था । अन्य ग्रहों के सम्बन्ध का विचार करना आदिकाल की अन्तिम शताब्दियों तक आवश्यक नहीं था, परन्तु पूर्वमध्यकाल में इस सिद्धान्त में विकास हुआ और ग्रहों की शत्रुता, मित्रता, सबलत्व, निर्बलत्व, स्वामित्व एवं दृष्टि की अपेक्षा से फलाफल का विचार किया जाने लगा । विकसित होकर आगे यही प्रक्रिया दशा के रूप को प्राप्त हुई । इसमें १२० वर्ष या १०८ वर्ष की परमायु मानकर नवग्रहों का विभाजन किया गया है । तात्पर्य यह है कि मनुष्य के जीवन काल में जन्मनक्षत्र के अनुसार जिस ग्रह की दशा होती है, उसी की अपेक्षा से सुख-दुख आदि फल मिलते हैं । यद्यपि दशाधिपति के फल में मित्र, शत्रु और समग्रह के घर में रहने के कारण फल में न्यूनाधिकता हो जाती है, पर दशाधिपति निश्चित समय की मर्यादा पर्यन्त वही रहता है । यवनों को उपर्युक्त जातक शास्त्र की प्रक्रिया उपयुक्त न जँची और उन्होंने एक नयी प्रणाली निकाली, जिसमें एक-एक वर्ष का पृथक्-पृथक् फल निकाला गया और प्रत्येक वर्ष में नवग्रहों को फल देने का अधिकार देते हुए भी एक प्रधान ग्रह को वर्षेश बतलाया । तत्कालीन भारतीय ज्योतिर्विदों ने इस नयी प्रणाली का स्वागत किया और इसे अपने ढाँचे में ढालकर वर्षपत्र - विषयक अनेक ग्रन्थों की रचना भारतीय ज्योतिष को भित्ति पर की। इन आचार्यों ने वर्ष प्रवेश समय की कुण्डली में बारह भावों में स्थित नवग्रहों फल का विवेचन जातक शास्त्र के अनुसार किया तथा ग्रहों के जन्मपत्र विषयक गणित का उपयोग भी कुछ हेर-फेर के साथ बतलाया तथा निम्न पाँच ग्रहों में से किसी एक बली ग्रह को वर्ष का स्वामी निर्धारित करने की प्रक्रिया घोषित की— ( १ ) जन्मकुण्डली की लग्न-राशि का स्वामी, ( २ ) वर्ष प्रवेश काल की लग्न-राशि का चतुर्थ अध्याय ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only ४०१ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy