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________________ मित्रराशि या उच्च की राशि में स्थित होकर १२४/५/७ ९/१० भावों में स्थित हो तो जातक को माता का सुख होता । यही यदि स्त्रीग्रह पापयुक्त या पाप-दृष्ट होकर ६।८।१२ वें भाव में हो तो माता का सुख नहीं होता । चन्द्रकुण्डली फल विचार चन्द्रकुण्डली से जन्मकुण्डली के समान फल का विचार करना चाहिए । यदि चन्द्र लग्नेश उच्च राशि, स्वराशि या मित्रराशि में स्थित होकर १२४|५|७१९ १०वें भाव में स्थित हो तो जातक चतुर, धनिक, कार्यकुशल, ख्यातिवान्, धन-धान्य समन्वित होता है तथा चन्द्र-लग्नेश पाप दृष्ट या पापयुत होकर ६१८ | १२वें भाव में स्थित हो तो जातक को नाना प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं । चन्द्र- लग्नेश शुभग्रहों से युत होकर जन्म लग्नेश से इत्थशाल करता हो तो जातक ऐश्वर्यवान्, पराक्रमी और सहनशील होता है । चन्द्र लग्न से चौथे मंगल, दसवें गुरु और ग्यारहवें शुक्र हो तो जातक राजमान्य, नेता, प्रतिनिधि और धारासभा का मेम्बर होता है । चन्द्र लग्न से बुध चौथे, शुक्र पाँचवें गुरु नौवें और मंगल दसवें स्थान में हो तो जातक राजा, मन्त्री, जागीरदार, जमींदार, शासक या उच्च पदासीन होनेवाला होता है, चन्द्र लग्नेश चन्द्रलग्न से नवम स्थान के स्वामी का मित्र होकर चन्द्रलग्न से दसवें भाव में स्थित हो तो जातक तपस्वी, महात्मा, शासक या पूज्य नेता होता है । चन्द्र- लग्नेश का ३। ६ वें भाव में रहना रोगसूचक है । विंशोत्तरी दशा फल विचार दशा के द्वारा प्रत्येक ग्रह की फल प्राप्ति का समय जाना जाता है। सभी ग्रह अपनी दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा और सूक्ष्म दशाकाल में फल देते हैं । जो ग्रह उच्चराशि, मित्र राशि या अपनी राशि में रहता है वह अपनी दशा में अच्छा फल और जो नीचराशि, शत्रुराशि और अस्तंगत हों वे अपनी दशा में धन-हानि, रोग, अवनति आदि फलों को करते हैं । रवि दशाफले - सूर्य की दशा में परदेशगमन, राजा से धन लाभ, व्यापार से आमदनी, ख्यातिलाभ, धर्म में अभिरुचि; यदि सूर्य नीच राशि में पापयुक्त या दृष्ट हो तो ऋणी, व्याधिपीड़ित, प्रियजनों के वियोगजन्य कष्ट को सहनेवाला, राजा से भय और कलह आदि अशुभ फल होता है । सूर्य यदि मेषराशि में हो तो नेत्ररोग, धनहानि, १. ग्रहवीर्यानुसारेण फलं ज्ञेयं दशासु च । आद्यद्रेष्काणगे खेटे दशारम्भे फलं वदेत् ॥ • दशामध्ये फलं वाच्यं मध्यद्रेष्काणगे खगे । अन्ते फलं तृतीयस्थे व्यस्तं खेटे च वक्रगे । - बृहपाराशरहोरा, दशाफल अ., श्लो. ३-४ । २. देखें, बृहत्पाराशरहोरा, दशाफलाध्याय, श्लो. ७. १५ । तृतीयाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only ३७९ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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