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________________ स्त्रीग्रह हो तो जातक को कन्याएँ अधिक उत्पन्न होती हैं । सप्तमांश लग्न का स्वामी पापग्रह हो, पापग्रह के साथ हो या पापग्रह की राशि में हो तो सन्तान नीच कर्म करनेवाली होती है और सप्तमांश लग्न का स्वामी स्वराशि का शुभग्रह से युक्त या दृष्ट हो या शुभग्रह की राशि में स्थित हो तो सन्तान शुभाचरण करनेवाली, सुन्दर, सुशील और गुणी होती है। सप्तमांश लग्न का स्वामी सप्तमांश लग्न से ६ या ८वें स्थान में पापग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो जातक सन्तानहीन होता है । नवमांश कुण्डली के फल का विचार नवमांश लग्न से स्त्रीभाव का विचार किया जाता है। इससे स्त्री का आचरण, स्वभाव, चेष्टा प्रभृति को देखना चाहिए। नवमांश लग्न का स्वामी मंगल हो तो स्त्री क्रूर स्वभाव की, कुलटा, लड़ाकू; सूर्य हो तो पतिव्रता, उग्रस्वभाव की; चन्द्रमा हो तो शीतलस्वभाव की, गौरवर्ण और मिलनसार प्रकृति की; बुध हो तो चतुर, चित्रकार, सुन्दर आकृति, शिल्प विद्या में निपुण; गुरु हो तो पीत वर्ण, ज्ञानवती, शुभाचरणवाली, पतिव्रता, सौम्य स्वभाव, व्रत-तीर्थ करनेवाली; शुक्र हो तो चतुर, शृंगारप्रिय, विलासी, कामक्रीड़ा में प्रवीण, गौरवर्ण, व्यभिचारिणी और शनि हो तो क्रूर स्वभाववाली, कुल के विरुद्ध आचरण करनेवाली, श्यामवर्ण, नीच संगति में रत, पति से विरोध करनेवाली होती है। नवमांश लग्न का स्वामी राहु, केतु के साथ हो तो दुराचारिणी, कुलटा, दुष्टा; नवमांश लग्न का स्वामी शुभग्रह हो और स्वराशिस्थ केन्द्र त्रिकोण में हो तो जातक को स्त्री का पूर्ण सुख मिलता है तथा नवमांश लग्न का स्वामी भाग्येश के साथ ७।११वें भाव में उच्च का होकर स्थित हो तो स्त्रियों से अनेक प्रकार का लाभ तथा ससुराल के धन का स्वामी होता है। नवमांश लग्न का स्वामी पापग्रहों से युक्त या दृष्ट ६।८।१२वें भाव में स्थित हो तो जातक को स्त्री का सुख नहीं होता है। यह जितने पापग्रहों से युक्त या दृष्ट हो उतनी ही स्त्रियों का नाश करनेवाला होता है। द्वादशांश कुण्डली के फल का विचार द्वादशांश लग्न पर से माता-पिता के सुख-दुख का विचार किया जाता है । यदि द्वादशांश लग्न का स्वामी शुभग्रह हो तो जातक के माता-पिता का शुभाचरण और पापग्रह हो तो व्यभिचारयुक्त आचरण होता है। द्वादशांश लग्न का स्वामी पुरुषग्रह अपनी राशि, मित्र की राशि या उच्च की राशि में स्थित होकर १।४।५।७।९।१०वें स्थानों में स्थित हो तो जातक को पिता का पूर्ण सुख और नीच राशि, शत्रुराशि या पापग्रह की राशि में स्थित हो या ६।८।१२वें 'भाव में बैठा हो तो पिता का अल्प सुख होता है। द्वादशांश लग्न का स्वामी स्त्रीग्रह सौम्य हो और स्वराशि, ३७८ भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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