SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहन का विचार होता है । मंगल भ्रातृकारक ग्रह है। भ्रातृ-सुख के लिए निम्न योगों का विचार कर लेना आवश्यक है। (क) तृतीय स्थान में शुभग्रह रहने से, (ख) तृतीय भाव पर शुभग्रह की दृष्टि होने से, (ग) तृतीयेश के बली होने से, (घ) तृतीय भाव के दोनों ओर द्वितीय और चतुर्थ में शुभग्रहों के रहने से, (ङ) तृतीयेश पर शुभग्रहों की दृष्टि रहने से, (च) तृतीयेश के उच्च होने से और (छ) तृतीयेश के साथ शुभग्रहों के रहने से भाई-बहन का सुख होता है। तृतीयेश या मंगल के युग्म-समसंख्यक वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन में रहने से कई भाई-बहनों का सुख होता है, यदि तृतीयेश और मंगल १२वें स्थान में हों, उनपर पापग्रहों की दृष्टि हो अथवा मंगल तृतीय स्थान में हो और उनपर पापग्रह की दृष्टि हो या पापग्रह तृतीय में हो तथा उसपर पापग्रहों की दृष्टि हो या तृतीयेश के आगे-पीछे पापग्रह हों या द्वितीय और चतुर्थ में पापग्रह हों तो भाई-बहन की मृत्यु होती है। तृतीयेश या मंगल ३।६।१२वें भाव में हो और शुभग्रह से दष्ट नहीं हो तो भाई का सुख नहीं होता है। तृतीयेश राहु या केतु के साथ ६।८।२२वें भाव में हो तो भ्रातृ-सुख का अनुभव होता है । ग्यारहवें स्थान का स्वामी पापग्रह हो या उस भाव में पापग्रह बैठे हों और शुभग्रह से दृष्ट न हों तो बड़े भाई का सुख नहीं होता है। तृतीय स्थान में पापग्रह का रहना अच्छा है, पर भ्रातृ-सुख के लिए अच्छा नहीं है। भ्रातृ-संख्या १-द्वितीय तथा तृतीय स्थान में जितने ग्रह रहें; उतने अनुज और एकादश तथा द्वादश स्थान में जितने ग्रह हों उतने ज्येष्ठ भ्राता होते हैं। यदि इन स्थानों में ग्रह नहीं हों तो इन स्थानों पर जितने ग्रहों की दृष्टि हो उतने अग्रज और अनुजों का अनुमान करना । परन्तु स्वक्षेत्री ग्रहों के रहने से अथवा उन भावों पर अपने स्वामी की दृष्टि पड़ने से भ्रातृसंख्या में वृद्धि होती है । २-भ्रातृसंख्या जानने की विधि यह भी है कि जितने ग्रह तृतीयेश के साथ हों, मंगल के साथ हों, तृतीयेश पर दृष्टि रखनेवाले हों और तृतीयस्थ हों उतनी ही भ्रातृसंख्या होती है। यदि उपर्युक्त ग्रह शत्रुगृही, नीच और अस्तंगत हों तो भाई अल्पायु के होते हैं। यदि ये ग्रह मित्रगृही, उच्च या मूल त्रिकोण के हों तो दीर्घायु के होते हैं। अभिप्राय यह है कि भाई के सम्बन्ध में (१) तृतीय स्थान से, (२) तृतीयेश से, (३) मंगल से, (४) तृतीय से सम्बन्धित ग्रह से, (५) तृतीयस्थ के नवांशपति से, (६) मंगल के सम्बन्धी ग्रहों से, (७) तृतीयेश के साथ योग करनेवाले ग्रहों से, (८) एकादशेश से, (९) एकादशस्थ ग्रह से तथा उसकी स्थिति पर से, (१०) एकादश स्थान के नवांश से तथा उस नवांश के स्वामी की स्थिति पर से, भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy