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धनेश का द्वादश भावों में फल
- धनेश लग्न में हो तो कृपण, व्यवसायी, कुकर्मरत, धनिक, विख्यात, सुखी, अतुलित ऐश्वर्यवान् और लब्धप्रतिष्ठ; द्वितीय भाव में हो तो धनवान्, धर्मात्मा, लोभी, चतुर, धनार्जन करनेवाला, व्यापारी, यशस्वी और दानी; तृतीय भाव में हो तो व्यापारी, कलहकर्ता, कलाहीन, चोर, चंचल, अविनयी और ठग; चौथे भाव में हो तो पिता से लाभ करनेवाला, सत्यवादी, दयालु, दीर्घायु, मकानवाला, व्यापार में लाभ करनेवाला और परिश्रमी; पाँचवें भाव में हो तो पुत्र द्वारा धनार्जन करनेवाला, सत्कार्यनिरत, प्रसिद्ध, कृपण और अन्तिम जीवन में दुखी; छठे भाव में हो तो धन-संग्रह में तत्पर, शत्रुहन्ता, भू-लाभान्वित, कृषक, प्रसिद्ध और सेवाकार्यरत; सातवें भाव में हो तो भोगविलासवती, धनसंग्रह करनेवाली श्रेष्ठ रमणी का भर्ता, भाग्यवान्, स्त्री-प्रेमी और चपल; आठवें भाव में हो तो पाखण्डी, आत्मघाती, अत्यन्त भाग्यशाली, परोपकारी, भाग्य पर विश्वास करनेवाला और आलसी; नौवें भाव में हो तो दानी, प्रसिद्ध पुरुष, धर्मात्मा, मानी और विद्वान्, दसवें भाव में हो तो राजमान्य, धन लाभ करनेवाला, भाग्यशाली, देशमान्य और श्रेष्ठ आचारवाला; ग्यारहवें भाव में हो तो प्रसिद्ध व्यापारी, परम धनिक, प्रख्यात, विजयी, ऐश्वर्यवान् और भाग्यशाली एवं बारहवें भाव में हो तो जातक निन्द्य ग्रामवासी, कृषक, अल्पधनी, प्रवासी और निन्द्य साधनों द्वारा आजीविका करनेवाला होता है। उपर्युक्त भावों में जो धनेश का फल कहा गया है, वह शुभग्रह का है। यदि धनेश क्रूर ग्रह हो या पापी हो तो विपरीत फल समझना चाहिए। किन्तु क्रूर धनेश ३।६।११वें भाव में स्थित हो तो जातक श्रेष्ठ होता है।
व्यापार का विचार करने के लिए सप्तम भाव से सहायता लेनी चाहिए । वाणिज्य का कारक बुध है, अतएव बुध, सप्तम भाव और द्वितीय इन तीनों की स्थिति एवं बलाबलानुसार व्यापार के सम्बन्ध में फल समझना चाहिए। यदि बुध सप्तम में हो और सप्तमेश द्वितीय स्थान में हो या द्वितीयेश बुध के साथ सप्तम भाव में हो तो जातक प्रसिद्ध व्यापारी होता है। बुध और शुक्र इन दोनों का योग द्वितीय या सप्तम में हो तथा इन ग्रहों पर शुभग्रहों की दृष्टि हो तो भी जातक व्यापारी होता है। यदि द्वितीयेश शुभ ग्रहों की राशि में स्थित हो तथा बुध या सप्तमेश से दृष्ट हो तो जातक व्यापारी होता है। जिसकी जन्मकुण्डली में उच्च का बुध सप्तम में बैठा हो तथा द्वितीय भवन पर द्वितीयेश की दृष्टि हो अथवा गुरु पूर्ण दृष्टि से द्वितीयेश को देखता हो तो जातक प्रसिद्ध व्यापारी होता है ।
तृतीय भाव विचार
तृतीय भाव से प्रधानतः भाई और बहनों का विचार किया जाता है; लेकिन ग्यारहवें भाव से बड़े भाई और बड़ी बहन का एवं तृतीय भाव से छोटे भाई और छोटी तृतीयाध्याय
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