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व्यक्तित्व के इन तीनों रूपों से सम्बन्ध हैं, पर आन्तरिक व्यक्तित्व के तीन रूप अपनी निजी विशेषता और शक्ति रखते हैं, जिससे मनुष्य के भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक इन तीनों जगतों का संचालन होता है । मनुष्य का अन्तःकरण इन दोनों व्यक्तित्व के उक्त तीनों रूपों को मिलाने का कार्य करता है । दूसरे दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि ये तीनों रूप एक मौलिक अवस्था में आकर्षण और विकर्षण की प्रवृत्ति द्वारा अन्तःकरण की सहायता से सन्तुलित रूप को प्राप्त होते हैं । तात्पर्य यह है कि आकर्षण की प्रवृत्ति बाह्य व्यक्तित्व को और विकर्षण की प्रवृत्ति आन्तरिक व्यक्तित्व को प्रभावित करती है और इन दोनों के बीच में रहनेवाला अन्तःकरण इन्हें सन्तुलन प्रदान करता है । मनुष्य की उन्नति और अवनति इन सन्तुलन के पलड़े पर ही निर्भर है । मानव जीवन के बाह्य व्यक्तित्व के तीन रूप और आन्तरिक व्यक्तित्व के तीन रूप तथा एक अन्तःकरण इन सात के प्रतीक सौर-जगत् में रहनेवाले ७ ग्रह माने गये हैं । उपर्युक्त ७ रूप सब प्राणियों के एक-से नहीं होते हैं, क्योंकि जन्म-जन्मान्तरों के संचित, प्रारब्ध कर्म विभिन्न प्रकार के हैं, अतः प्रतीक रूप ग्रह अपने- अपने प्रतिरूप्य के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार की बातें प्रकट करते हैं । प्रतिरूप्यों की सच्ची अवस्था बीजगणित की अव्यक्त मान कल्पना द्वारा निष्पन्न अंकों के समान प्रकट हो जाती है । आधुनिक वैज्ञानिक प्रत्येक वस्तु की आन्तरिक रचना सौर मण्डल से मिलतीजुलती बतलाते हैं । उन्होंने परमाणु के सम्बन्ध में अन्वेषण करते हुए बताया है कि प्रत्येक पदार्थ की सूक्ष्म रचना का आधार परमाणु हैं । अथवा यों कहें कि परमाणु की ईंटों को जोड़कर पदार्थ का विशाल भवन निष्पन्न होता है और यह परमाणु सौर-जगत् के समान आकार-प्रकारवाला है । इसके मध्य में एक धनविद्युत् का बिन्दु है, जिसे केन्द्र कहते हैं । इसका व्यास एक इंच के १० लाखवें भाग का भी १० लाखवाँ भाग बताया गया है । परमाणु के जीवन का सार इसी केन्द्र में बसता है । इस केन्द्र के चारों ओर अनेक सूक्ष्मातिसूक्ष्म विद्युत्कण चक्कर लगाते रहते हैं और ये केन्द्रवाले धनविद्युत्कण के साथ मिलने का उपक्रम करते रहते हैं । इस प्रकार के अनन्त परमाणुओं के समाहार का एकत्र स्वरूप हमारा शरीर है । भारतीय दर्शन में भी 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' का सिद्धान्त प्राचीन काल से ही प्रचलित है । तात्पर्य यह है कि वास्तविक सौरजगत् में सूर्य, चन्द्र आदि ग्रहों के भ्रमण करने में जो नियम कार्य करते हैं, वे ही नियम प्राणीमात्र के शरीर में स्थित सौर-जगत् के ग्रहों के भ्रमण करने में भी काम करते हैं । अतः आकाश स्थित ग्रह शरीर स्थित ग्रहों के प्रतीक हैं ।
प्रथम कल्पनानुसार बाह्य और आन्तरिक व्यक्तित्व के ६ रूप तथा १ अन्तःकरण इन सातों प्रतिरूप्यों के प्रतीक ग्रह निम्न प्रकार हैं :
१. बाह्य व्यक्तित्व के प्रथम रूप विचार का प्रतीक बृहस्पति है । यह प्राणीमात्र के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है और शरीर संचालन के लिए रक्त प्रदान करता है । जीवित प्राणी के रक्त में रहनेवाले कीटाणुओं की चेतना से इसका
भारतीय ज्योतिष
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