________________
छत्र योग
. सप्तम भाव से आगे के सात स्थानों में समस्त ग्रह हों तो छत्र योग होता है। इस योगवाला व्यक्ति धनी, लोकप्रिय, राजकर्मचारी, उच्चपदाधिकारी, सेवक, परिवार के व्यक्तियों का भरण-पोषण करनेवाला एवं अपने कार्य में ईमानदार होता है । चाप योग
दशम भाव से आगे के सात स्थानों में सभी ग्रह हों तो चाप योग होता है। इस योगवाला व्यक्ति जेलर, गुप्तचर, राजदूत, चौर, वन का अधिकारी, भाग्यहीन और झूठ बोलनेवाला होता है। इस योग का एक प्रभाव यह भी होता है कि पुलिस विभाग से अवश्य सम्बन्ध रहता है । तन्त्र-मन्त्र की सिद्धि भी इस योगवाले व्यक्ति को विशेष रूप से होती है। चक्र योग
लग्न से आरम्भ कर एकान्तर से छह स्थानों में-प्रथम, तृतीय, पंचम, सप्तम, नवम और एकादश भाव में सभी ग्रह हों तो चक्र योग होता है। इस योगवाला जातक राष्ट्रपति या राज्यपाल होता है। चक्र योग राजयोग का ही एक रूप है, इसके होने से व्यक्ति राजनीति में दक्ष होता है और उसका प्रभुत्व बीस वर्ष की अवस्था के पश्चात् बढ़ने लगता है। समुद्र योग
द्वितीय भाव से एकान्तर कर छह राशियों में २।४।६।१०।१२वें स्थान में समस्त ग्रह हों तो समुद्र योग होता है। इस योग के होने से जातक धनी, राजमान्य, भोगी, लोकप्रिय, पुत्रवान् और वैभवशाली होता है ।। गोल योग
__ समस्त ग्रह एक राशि में हों तो गोल योग होता है। इस योगवाला बली, पुलिस या सेना में नौकरी करनेवाला, दीन, मलीन, विद्या-ज्ञानशून्य एवं चालाकी से कार्य करनेवाला होता है । युग योग
दो राशियों में समस्त ग्रह हों तो युग योग होता है। इस योगवाला पाखण्डी, निर्धन, समाज से बाहर, माता-पिता के सुख से रहित, धर्महीन एवं अस्वस्थ रहता है। शूल योग
तीन राशियों में समस्त ग्रह हों तो शूल योग होता है। यह योग जातक को तीक्ष्ण स्वभाव, आलसी, निर्धन, हिंसक, शूर, युद्ध में विजयी और राजकर्मचारी बनाता है।
२.
मारतीय ज्योतिष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org