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________________ या पापग्रह की राशि में गया हुआ मंगल १६४७१०वें स्थान में हो तो रोग से अन्धा होता है। २१-मकर या कुम्भ का सूर्य ७वे स्थान में हो या शुभग्रह ६।८।१२वें स्थान में गये हों और उनको क्रूरग्रह देखते हों तो जातक अन्धा होता है । २२-शुक्र और लग्नेश ये दोनों दूसरे और १२वें स्थान के स्वामी से युक्त हों और ६।८।१२वें स्थान में स्थित हों तो जातक अन्धा होता है । २३-चौथे, पाँचवें में पापग्रह हों या पापग्रह से दृष्ट चन्द्रमा ६।८।१२वें स्थान में हो तो जातक २५ वर्ष की आयु के बाद काना होता है । २४-चन्द्र और सूर्य दोनों शुभग्रहों से अदृष्ट होते हुए बारहवें स्थान में स्थित हों या सिंह राशि का शनि या शुक्र लग्न में हो तो जातक मध्यावस्था में अन्धा होता है। २५-शनि, चन्द्र, सूर्य ये तीनों क्रमशः १२।२।८ में स्थित हों तो नेत्रहीन तथा छठे स्थान में चन्द्र, आठवें में रवि और मंगल बारहवें में हो तो वात और कफ रोग से जातक अन्धा होता है। सुख विचार-लग्नेश निर्बल होकर ६।८।१२वें भाव में हो तो सुख की कमी तथा ६।८।१२वें भावों के स्वामी कमज़ोर होकर लग्न में बैठे हों तो सुख की कमी समझना चाहिए । षष्ठेश और व्ययेश अपनी राशि में हों तो भी जातक को सुख का अभाव या अल्पसुख होता है। लग्नेश के निर्बल होने से शारीरिक सुखों का अभाव रहता है । लग्न में क्रूरग्रह शनि और मंगल के रहने से शरीर रोगी रहता है। साहस विचार-लग्नेश बलवान् हो या ३।६।११वें भावों में क्रूरग्रहों की राशियाँ हों तो जातक साहसी अन्यथा साहसहीन होता है। नोकरी योग-व्ययेश श२।४।५।९।१० भावों में से किसी भी भाव में हो तो नौकरी योग होता है। इस योग के होने पर ३।६।११ भावों में सौम्य ग्रह-बलवान् चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र, केतु हों या इन ग्रहों की राशियाँ हों तो दीवानी महकमे की नौकरी का योग होता है। ३।६।११ भावों में क्रूरग्रहों की राशियाँ हों और इन भावों में से किसी भी भाव में स्वगृही ग्रह हों तो पुलिस अफ़सर का योग होता है। ३।६।११ भावों में से किन्हीं भी दो भावों में क्रूरग्रहों की राशियाँ हों और शेष स्थानों में सौम्य ग्रहों की राशियाँ हों, तथा इन स्थानों में भी कोई ग्रह स्वगृही हो और लग्नेश बलवान् हो तो जज या न्यायाधीश का योग होता है। ३।६।११ भाबों में क्रूरग्रहों की राशियाँ हों और इन भावों में कोई ग्रह उच्च का हो तो मजिस्ट्रेट होने का योग होता है । राज योग जिस जन्मकुण्डली में तीन अथवा चार ग्रह अपने उच्च या मूल-त्रिकोण में बली हों तो प्रतापशाली व्यक्ति मन्त्री या राज्यपाल होता है। जिस जातक के पांच अथवा तृतीयाध्याय २९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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