________________
४-धनेश शुभग्रह से दृष्ट हो एवं लग्नेश पापग्रह से युक्त हो तो सरोग नैत्र होते हैं।
५-दूसरे और बारहवें स्थान के स्वामी शनि, मंगल और गुलिक से युक्त हों तो नेत्र में रोग होता है ।
६-नेत्र स्थान २०१२ के स्वामी तथा नवांश का स्वामी पापग्रह की राशि के हों तो नेत्ररोग से पीड़ित होता है।
७-लग्न तथा आठवें स्थान में शुक्र हो और उसपर क्रूरग्रह की दृष्टि हो तो नेत्र रोग से पीड़ित होता है ।
८-शयनावस्था में गया हुआ मंगल लग्न में हो तो नेत्र में पीड़ा होती है।
९-शुक्र से ६।८।१२वें स्थान में नेत्र-स्थान का स्वामी हो तो नेत्ररोगी होता है।
१०-पापग्रह से दृष्ट सूर्य ५।९ में हो तो निस्तेज नेत्र होते हैं ।
११--चन्द्र से युक्त शुक्र ६।८।१२वें स्थान में स्थित हो तो निशान्ध-रतौंधी रोग से पीड़ित होता है।
१२-नेत्र-स्थान ( २।१२ ) के स्वामी शुक्र, चन्द्र से युक्त हो, लग्न में स्थित हो तो निशान्ध योग होता है ।
१३-मंगल या चन्द्रमा लग्न में हो और शुक्र, गुरु उसे देखते हों या इन दोनों में कोई एक ग्रह देखता हो तो जातक काना होता है।
१४-सिंह राशि का चन्द्रमा सातवें स्थान में मंगल से दृष्ट हो या कर्क राशि का रवि सातवें स्थान में मंगल से दृष्ट हो तो जातक काना होता है।
१५-चन्द्र और शुक्र का योग सातवें या बारहवें स्थान में हो तो बायीं आँख का काना होता है।
१६-बारहवें भाव में मंगल हो तो वाम नेत्र में एवं दूसरे स्थान में शनि हो तो दक्षिण नेत्र में चोट लगती है।
१७ - लग्नेश और धनेश ६।८।१२वें भाव में हों और चन्द्र, सूर्य सिंह राशि के लग्न में स्थित हों तथा शनि इनको देखता हो तो नेत्र ज्योतिहीन होते हैं।
१८-लग्नेश सूर्य, शुक्र से युत होकर ६।८।१२वें स्थान में गया हो, नेत्र स्थान १।१२ के स्वामी और लग्नेश ये दोनों सूर्य, शुक्र से युत होकर ६।८।१२वें स्थान में हों तो जन्मान्ध जातक होता है।
१९-चन्द्र-मंगल का योग ६।८।१२वें स्थान में हो तो गिरने से जातक अन्धा होता है। गुरु और चन्द्रमा का योग ६।८।१२वें भाव में हो तो ३० वर्ष की आयु के पश्चात् अन्धा होता है ।
__ २०-चन्द्र और सूर्य दोनों तीसरे स्थान में अथवा ११४७१०वें स्थान में हों २९१
भारतीय ज्योतिष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org