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तीन ग्रहों की युति का फल
रवि-चन्द्र-मंगळ एक साथ हों तो जातक शूरवीर, धीर, ज्ञानी, बली, वैज्ञानिक, शिल्पी एवं कार्यदक्ष; रवि-चन्द्र-बुध एक साथ हों तो तेजस्वी, विद्वान्, शास्त्रप्रेमी, राजमान्य, भाग्यशाली एवं नीतिविशारद; रवि-चन्द्र-गुरु एक साथ हों तो योगी, ज्ञानी, मर्मज्ञ, सौम्यवृत्ति, सुखी, स्नेही, विचारक, कुशल कार्यकर्ता एवं आस्तिक; रवि-चन्द्रशुक्र एक साथ हों तो हीनवीर्य, व्यापारी, सुखी, निस्सन्तान या अल्पसन्तान, लोभी एवं साधारण धनी; रवि-चन्द्र- शनि एक साथ हों तो अज्ञानी, धूर्त, वाचाल, पाखण्डी, अविवेकी, चंचल एवं अविश्वासी; रवि-मंगल बुध एक साथ हों तो साहसी, निष्ठुर, ऐश्वर्यहीन, तामसी, अविवेकी, अहंकारी एवं व्यर्थ बकवादी; रवि-मंगल-गुरु एक साथ हों तो राजमान्य, सत्यवादी, तेजस्वी, धनिक, प्रभावशाली एवं ईमानदार; रवि-मंगलशुक्र एक साथ हों तो कुलीन, कठोर, वैभवशाली, नेत्ररोगी एवं प्रवीण; रवि-मंगलशनि एक साथ हों तो धन - जनहीन, दुखी, लोभी एवं अपमानित होनेवाला; रवि-बुधरु एक साथ हों तो विद्वान्, चतुर, शिल्पी, लेखक, कवि, शास्त्र - रचयिता, नेत्ररोगी, वातरोगी एवं ऐश्वर्यवान्; रवि-बुध-शुक्र एक साथ हों तो दुखी, वाचाल, भ्रमणशील, द्वेषी एवं घृणित कार्य करनेवाला; रचि-बुध-शनि एक साथ हों तो कलाद्वेषी, कुटिल, धननाशक, छोटी अवस्था में सुन्दर पर ३६ वर्ष की अवस्था में विकृतदेही एवं नीचकर्मरत, रवि-गुरु-शुक्र एक साथ हों तो परोपकारी, सज्जन, राजमान्य, नेत्रविकारी, लब्धप्रतिष्ठ एवं सफल कार्य संचालक; रवि-गुरु-शनि एक साथ हों तो चरित्रहीन, दुखी, शत्रुपीड़ित, उद्विग्न, कुष्ठरोगी एवं नीच संगतिप्रिय रवि शुक्र शनि एक साथ हों तो दुश्चरित्र, नीचकार्यरत, घृणित रोग से पीड़ित एवं लोकतिरस्कृत; चन्द्र-मंगल- बुध एक साथ हों तो कठोर, पापी, धूर्त, क्रूर एवं दुष्ट स्वभाववाला; चन्द्र-बुध-गुरु एक साथ हों तो धनी, सुखी, प्रसन्नचित्त, तेजस्वी, वाक्पटु एवं कार्यकुशल; चन्द्र-बुध-शुक्र एक साथ हों तो धन-लोभी, ईर्ष्यालु, आचारहीन, दाम्भिक, मायावी और धूर्त, चन्द्रबुध-शनि एक साथ हों तो अशान्त, प्राज्ञ, वचनपटु, राजमान्य एवं कार्य-परायण; चन्द्र-गुरु-शुक्र एक साथ हों तो सुखी, सदाचारी, धनी, ऐश्वर्यवान्, नेता, कर्तव्यशील, एवं कुशाग्रबुद्धि; चन्द्र-गुरु-शनि एक साथ हों तो नीतिवान्, नेता, सुबुद्धि, शास्त्रज्ञ, व्यवसायी, अध्यापक एवं वकील; चन्द्र-शुक्र शनि एक साथ हों तो लेखक, शिक्षक, सुकर्मरत, ज्योतिषी, सम्पादक, व्यवसायी एवं परिश्रमी; मंगल-बुध-गुरु एक साथ हों तो कवि, श्रेठ पुरुष, गायन-निपुण, स्त्री-सुख से युक्त, परोपकारी, उन्नतिशील, महत्त्वाकांक्षी एवं जीवन में बड़े-बड़े कार्य करनेवाला; मंगल-बुध-शुक्र एक साथ हों तो कुलहीन, विकलांगी, चपल, परोपकारी एवं जल्दबाज़; मंगल-बुध-शनि एक साथ हों तो व्यसनी, प्रवासी, मुखरोगी एवं कर्तव्यच्युत; मंगल-गुरु-शुक्र एक साथ हों तो राजमित्र, विलासी, सुपुत्रवान्, ऐश्वर्यवान्, सुखी एवं व्यवसायी; मंगल-गुरु-शनि एक साथ हों तो पूर्ण ऐश्वर्यवान्, सम्पन्न, सदाचारी, सुखी एवं अन्तिम जीवन में महान्
तृतीयाध्याय
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