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विद्वान् और कलाविशारद एक बारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो मिथ्याभाषी, कुलकलंकी, मद्यपायी, नीच प्रकृति और व्यसनी होता है ।
गुरु-लग्नभाव को बृहस्पति पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक धर्मात्मा, कीर्तिवान्, कुलोन, विद्वान् और पतिव्रता-शुभाचरणवाली स्त्री का पति; दूसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो पितृ-धननाशक, धनार्जन करनेवाला, कुटुम्बी, मित्रवर्ग में श्रेष्ठ और राजमान्य, तीसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो भाग्यवान्, पराक्रमी, भ्रातृ-सुखयुक्त, प्रवासी और शुभाचरण करनेवाला; चौथे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो श्रेष्ठ विद्याव्यसनी, भूमिपति, वाहन-सुखयुक्त और माता-पिता के पूर्ण सुख को प्राप्त करनेवाला; पांचवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो धनिक, ऐश्वर्यवान्, विद्वान्, व्याख्याता, पाँच पुत्रवाला और कलाप्रिय; छठे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो व्याधिग्रस्त, धन नष्ट करनेवाला, क्रोधी और धूर्त, सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो सुन्दर, धनवान्, कीर्तिवान् और भाग्यशाली; आठवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो राजभय, चिन्तित, आठ वर्ष की अवस्था में मृत्युतुल्य कष्ट भोगनेवाला और २६ वर्ष की आयु में कारागारजन्य कष्ट पानेवाला; नवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कुलीन, भाग्यवान्, शास्त्रज्ञ, धर्मात्मा, स्वतन्त्र, सन्तानयुक्त, दानी और व्रतोपवास करनेवाला; दसवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो राजमान्य, सुखी, धन-पुत्रादि से युक्त, भूमिपति और ऐश्वर्यवान्; ग्यारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो बुद्धिमान्, पाँच पुत्रों का पिता, विद्वान्, कलाप्रिय, स्नेही और ७० वर्ष की अवस्था से अधिक जीवित रहनेवाला एवं बारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो रजोगुणी, दुखी, धन खर्च करनेवाला और निर्बुद्धि होता है।
__ शुक्र-लग्नस्थान को शुक्र पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक सुन्दर, शौक़ीन, परस्त्रीरत, भाग्यशाली और चतुर; दूसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो धन तथा कुटुम्ब से सुखी, धनार्जन करनेवाला, परिश्रमी और विलासी; तीसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो शासक, अधिक भाई-बहनवाला, अल्पवीर्य और २५ वर्ष की वायु में भाग्योदय को प्राप्त होनेवाला; चौथे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो सुखी, सुन्दर, समाजसेवी, भाग्यशाली, आज्ञाकारी और राजसेवी; पाँचवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो विद्वान्, धनी, एक कन्या तथा तीन या पाँच पुत्रों का पिता, प्रेमी और बुद्धिमान्; छठे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो पराक्रमी, शत्रुनाशक, कुमार्गगामी, वीर्यविकारी, श्वेत कुष्ठयुक्त और वाचाल; सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कामी, व्यभिचारी, लम्पट, सुन्दर भार्या को प्राप्त करनेवाला और २५ वर्ष की अवस्था से स्वाधीन जीवन व्यतीत करनेवाला; आठवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो प्रमेह रोगी, दुखी, निर्धन, कुटुम्ब-रहित, साधु-सेवारत और कफ तथा वात रोग से पीड़ित; नौवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कुलदीपक, प्रामाधिपति, शत्रुजयी, धर्मात्मा, कीतिवान् और विलक्षण;
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