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मित्रक्षेत्रगत ग्रहों का फल
सूर्य -- मित्र की राशि में हो तो जातक यशस्वी, दानी, व्यवहारकुशल; चन्द्र हो तो सुखी, धनवान्, गुणज्ञ; मंगल हो तो मित्र-प्रिय, धनिक; बुध हो तो शास्त्रज्ञ, विनोदी, कार्यदक्ष ; गुरु हो तो उन्नतिशील, बुद्धिमान्; शुक्र हो तो पुत्रवान्, सुखी एवं शनि हो तो परान्नभोजी, धनवान्, सुखी और प्रेमिल होता है ।
एक ग्रह मित्रक्षेत्री हो तो दूसरे के द्रव्य का उपयोगकर्ता; दो हों तो मित्र के द्रव्य का उपभोक्ता; तीन हों तो स्वोपार्जित धन का उपभोक्ता; चार हों तो दाता; पाँच हों तो सेनानायक, सरदार, नेता; छह हों तो सर्वोच्च नेता, सेनापति, राजमान्य, उच्च पदासीन एवं सात हों तो जातक राजा या राजा के तुल्य होता है ।
शत्रुक्षेत्रगत ग्रहों का फल
रवि शत्रुक्षेत्री — शत्रुग्रह की राशि में हो तो जातक दुखी, नौकरी करनेवाला; चन्द्रमा हो तो माता से दुखी, हृद्रोगी; मंगल हो तो विकलांगी, व्याकुल, दीन-मलीन; बुध हो तो वासनायुक्त, साधारणतः सुखी, कर्तव्यहीन; गुरु हो तो भाग्यवान्, चतुर; शुक्र हो तो नौकर, दासवृत्ति करनेवाला और शनि हो तो दुखी होता है ।
नीचराशिगत ग्रहों का फल
सूर्य नीच राशि में हो तो जातक पापी, बन्धुसेवा करनेवाला; चन्द्रमा हो तो रोगी, अल्प धनवान् और नीच प्रकृति; मंगल हो तो नीच, कृतघ्न; बुध हो तो बन्धुविरोधी, चंचल, उग्र प्रकृति; गुरु हो तो खल, अपवादी, अपयशभागी; शुक्र हो तो दुखी और शनि हो तो दरिद्री, दुखी होता है ।
तीन ग्रह नीच के हों तो जातक मूर्ख, तीन ग्रह अस्तंगत हों तो दास और तीन ग्रह शत्रु राशिगत हों तो दुखी तथा जीवन के अन्तिम भाग में सुखी होता है ।
नवग्रहों की दृष्टि का फल
सूर्य- प्रथम भाव को सूर्य पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक रजोगुणी, नेत्ररोगी, सामान्य धनी, साधुसेवी, मन्त्रज्ञ, वेदान्ती, पितृभक्त, राजमान्य और चिकित्सक; द्वितीय भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो धन तथा कुटुम्ब से सामान्य सुखी, नेत्ररोगी, पशु व्यवसायी, संचित धननाशक, परिश्रम से थोड़े धन का लाभ करनेवाला और कष्टसहिष्णु; तृतीय भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कुलीन, राजमान्य, बड़े भाई के सुख से रहित, उद्यमी, शासक, नेता और पराक्रमी; चतुर्थ भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो २२-२३ वर्ष पर्यन्त सुखहानि प्राप्त करनेवाला, सामान्यतः मातृसुखी, २२ वर्ष की आयु के पश्चात् वाहनादि सुखों को प्राप्त करनेवाला और स्वाभिमानी; पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो प्रथम सन्ताननाशक, पुत्र के लिए चिन्तित, मन्त्रशास्त्रज्ञ, विद्वान्, सेवावृत्ति और २०-२१ वर्ष की अवस्था में सन्तान
वृतीयाध्याय
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