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________________ चन्द्रमा-वृष राशि का होने से मित्र शुक्र के गृह में है, इस कारण इसका गृह बल १५।० लया जायेगा। भौम-मिथुन राशि का होने से मित्र बुध के गृह में है, अतः इसका गृह बल १५० ग्रहण करना चाहिए। इस तरह समस्त ग्रहों का गृहबल निकाल लेना चाहिए। होराबल-~-सूर्य अपने होरा में है, अतः इसका ३०० बल; चन्द्रमा अपने होरा में है, अतः इसका ३०० बल; भौम का चन्द्रमा के गृह में होने के कारण २२।३० बल, बुध का अपने सम चन्द्रमा के गृह में रहने के कारण ७।३० बल, गुरु का अपने अतिमित्र सूर्य के गृह में रहने के कारण २२।३० बल, शुक्र का अपने सम सूर्य के गृह में होने के कारण ७।३० बल एवं शनि का अपने सम सूर्य के गृह में रहने के कारण ७।३० होरा का बल होगा। द्रेष्काण बल-द्रेष्काण कुण्डली में अपनी राशि में रहने के कारण सूर्य का ३०० बल, चन्द्रमा का समसंज्ञक-उदासीन शुक्र की राशि में रहने के कारण ७।३० बल, भौम का उदासीन शनि की राशि में रहने के कारण ७।३० बल, बुध का मित्र गुरु की राशि में रहने के कारण १५१० बल, गुरु का अपनी राशि में रहने के कारण ३०।० बल, शुक्र क. ल की राशि में रहने के कारण १५० बल और शनि का अतिमित्र बुध की राशि में रहने के कारण २२।३० द्रेष्काण बल होगा। सप्तांश बल-सप्तांश कुण्डली में सूर्य का शत्रु बुध की राशि में रहने के कारण ३।४५ सप्तांश बल, चन्द्रमा का मित्र शुक्र की राशि में रहने के कारण १५।० बल, मंगल का अपनी राशि में रहने के कारण ३०१० बल होगा। इसी प्रकार समस्त ग्रहों का सप्तांश बल बना लेना चाहिए। गृह, होरा, द्रेष्काण, सप्तांश बल साधन के समान ही नवांश, द्वादशांश और त्रिंशांश कुण्डली में स्थित ग्रहों का बल-साधन भी कर लेना चाहिए । इन सातों फलों के योगफल में ६० का भाग देने से सप्तवर्गक्य बल आयेगा। पूर्वोक्त उच्चबल, सप्तवगैक्यबल, युग्मायुग्मबल, केन्द्रादिबल एवं द्रेष्काण बल इन पांचों बलों का योग स्थानबल होता है। जन्मपत्री में स्थानबल चक्र लिखने के लिए उपर्युक्त पाँचों बलों के योग का चक्र लिखना चाहिए । दिग्बलसाधन शनि में से लग्न को, सूर्य और मंगल में से चतुर्थ भाव को, चन्द्रमा और शुक्र में से दशम भाव को, बुध और गुरु में से सप्तम भाव को घटाकर शेष में राशि ६ का भाग देने से ग्रहों का दिग्बल आता है। यदि शेष ६ राशि से अधिक हो तो १२ राशि में से घटाकर तब भाग देना चाहिए। दूसरा नियम यह भी है कि शेष की विकलाओं में १०८०० का भाग देने से कला, विकलात्मक, दिग्बल आ जाता है। द्वितीयाध्याय . २३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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