SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रेष्काण बलसाधन पुरुष ग्रहों—सूर्य, भौम और गुरु का प्रथम द्रेष्काण में १५ कला बल, स्त्री ग्रहों -शुक्र और चन्द्रमा तृतीय द्रेष्काण में १५ कला बल एवं नपुंसक ग्रहों-बुध और शनि का द्वितीय द्रेष्काण में १५ कला बल होता है । जिस ग्रह का जिस द्रेष्काण में बल बतलाया गया है, यदि उसमें ग्रह न रहें तो शून्य बल होता है। उदाहरण-अभीष्ट उदाहरण कुण्डली में पूर्वोक्त द्रेष्काण विचार के अनुसार सूर्य द्वितीय द्रेष्काण में, चन्द्रमा प्रथम में, भौम तृतीय में, बुध तृतीय में, गुरु तृतीय में, शुक्र तृतीय में और शनि प्रथम में है। उपर्युक्त नियमानुसार सूर्य का शून्य बल, चन्द्रमा का शून्य, भौम का शून्य, बुध का शून्य, गुरु का शून्य, शुक्र का १५ कला और शनि का शून्य बल हुआ। देष्काण बल चक्र | सू. | चं. । भौ. । बु. गु.। | : :: : शु. । श. | ग्रह अंश १५ । ०। कला विकला ० - सप्तवर्ग बलसाधन पहले गृह, होरा, द्रेष्काण, नवांश, द्वादशांश, त्रिंशांश और सप्तांश का साधन कर उक्त कुण्डली चक्र बनाने की विधि उदाहरण सहित लिखी गयी है। इन सातों वर्गों का साधन कर बल निम्न प्रकार सिद्ध करना चाहिए । अं.क.वि. स्वगृही ग्रह का बल ०१३०० अतिमित्रगृही ग्रह का बल ___।२२।३० मित्र , , , , ०।१५।० सम , , , , ०। ७।३० शत्रु , , , , । ३।४५ अतिशत्रु , , , , ०। ११५२।३० सब ग्रहों के बल को जोड़कर ६० से भाग देने पर अंशात्मक ऐक्य बल होता है। उदाहरण-सूर्य जन्मकुण्डली में मेष राशि का है, अतः अतिमित्र के गृह में होने से २२।३० बल गृह का प्राप्त हुआ। १. यहाँ मित्रामित्र की गणना पंचधा मैत्री चक्र के अनुसार ग्रहण करनी चाहिए। भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy