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३।१८ सूर्य ६। ० चन्द्र
४।६ भौम ११।२४
१।८।१२ में से १।१।२४ को घटाया
६।१८ १०।२४ राहु ६१८ ४। ६ राहु का भोग्य हुआ।
यहां पर राहु के पहले तक सूर्यादि ग्रहों का काल शून्य माना जायेगा और आगे चक्र के अनुसार वर्षादि लिखे जायेंगे। आगे कुण्डली में सूर्य महादशा की अन्तर्दशा लिखी जाती है।
सूर्यान्तर्वशा वा | आ. | चं. । भौ. | रा. | जी. | श. | बु. । के. शु. । ग्र.. .: ० ० ० ० ० ० ० १ | वर्ष ० ० ० ४ ९ ११ । १० ४ ० | मास ० ० ० ६ १८ / २० ६ ६ ० दिन संवत् संवत् संवत् संवत् | संवत् संवत् संवत् संवत् संवत् संवत् २००१/२००१२००१/२००१२००२/२००२/२००३.२०० | सूर्य सूर्य सूर्य सूर्य सूर्य | सूर्य | सूर्य | सूर्य सूर्य सूर्य | १० | १० | १० १० १६ ४ | १६ | २२ | २८/ २८
चन्द्रान्तर्वशा चक्र
००४/२००५
चं.
भौ. |
रा.
।
जी.
श.
क.
|
आ.
|
वर्ष
६ | मास
| दिन |संवत् संवत् संवत् संवत् | संवत् संवत् संवत् संवत् | संवत् संवत् २००५/२००६/२००६/२००८/२००९२०११२०१२२०१३/२०१४२०१५ | सूर्य सूर्य | सूर्य सूर्य सूर्य सूर्य सूर्य सूर्यो। सूर्य सूर्य |
विवरण-जिस प्रकार विंशोत्तरी दशा निकालने में ऊपर के वर्षादि मान को नीचे के राश्यादि में जोड़ा गया था अर्थात् विकलाओं को पलों में, कलाओं को द्वितीयाध्याय
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