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________________ तात्कालिक और नैसर्गिक दोनों जगह मित्र होने से अतिमित्र, दोनों जगह शत्रु होने से अतिशत्रु, एक में मित्र और दूसरे में सम होने से मित्र, एक में सम और दूसरे में शत्रु होने से शत्रु एवं एक में शत्रु और दूसरे में मित्र होने से सम-उदासीन ग्रह होते हैं। - जन्मपत्री में इस पंचधा मैत्रीचक्र को भी लिखना चाहिए । पारिजातादि विचार __पारिजातादि ज्ञात करने के लिए पहले दशवर्ग चक्र बना लेना चाहिए। इस चक्र की प्रक्रिया यह है कि पहले जो होरा, द्रेष्काण, सप्तांश आदि बनाये हैं उन्हें एक साथ लिखकर रख लेना चाहिए । इस चक्र में जो ग्रह अपने वर्ग अतिमित्र के वर्ग या उच्च के वर्ग में हों उसकी स्वादि वर्गी संज्ञा होती है। जिस जन्मपत्री में दो ग्रह स्वादि वर्गी हों उनकी पारिजात संज्ञा, तीन की उत्तम, चार की गोपुर, पांच की सिंहासन, छह की पारावत, सात की देवलोक, आठ की ब्रह्मलोक, नौ की ऐरावत और दश की श्रीधाम संज्ञा होती है। ये सब योग विशेष है, आगे इनका फल लिखा जायेगा। वर्गक्य पारिजात उत्तम सिंहासन गोपुर पारावत देवलोक ब्रह्मलोक योग विशेष ऐरावत श्रीधाम कारकांश कुण्डली बनाने की विधि सूर्यादि सात ग्रहों में जिसके अंश सबसे अधिक हों वही आत्मकारक ग्रह होता है। यदि अंश बराबर हों तो उनमें जिनकी कला अधिक हों वह; कला की भी समता होने पर जिसकी विकला अधिक हों वह आत्मकारक होता है। विकलाओं में भी समानता होने पर जो बली ग्रह होगा, वही आत्मकारक उस कुण्डली में माना जायेगा । आत्मकारक से अल्प अंशवाला भ्रातृकारक, उससे न्यून अंशवाला मातृकारक, उससे न्यून अंशवाला पुत्रकारक, उससे न्यून अंशवाला जातिकारक और उससे न्यून अंशवाला स्त्रीकारक होता है। किसी-किसी आचार्य के मत से पितृकारक पुत्रकारक के स्थान में माना गया है। कारकांश कुण्डली निर्माण की प्रक्रिया यह है कि आत्मकारक ग्रह जिस राशि के नवांश में हो उसको लग्न मानकर सभी ग्रहों को यथास्थान रख देने से जो कुण्डली होती है, उसी को कारकांश कुण्डली कहते हैं । हितीयाध्याय १९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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