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योगफलवाली कलाओं में ३० का भाग देने से जो लब्ध आवे उसमें एक और जोड़ दें। इस योगफल को आगे दिये षष्ट्यंश चक्र में देखने से षष्टयंश की राशि मिल जायेगी। विषम राशिवाले ग्रह का देवतांश विषम-देवतांश के नीचे और सम राशिवाले का सम देवतांश के नीचे मिलेगा।
षष्टयंश कुण्डली बनाने का उदाहरण-लग्न ४।२३।२५।२७ है। यहाँ राशि अंश को छोड़कर अंशों की कला बनायी तो--२३।२५
१३८० + २५ = १४०५ : ३० = ४६ शेष २५
लब्ध ४६ +१= ४७वां षष्टयंश हुआ, चक्र में देखा तो सिंह राशि का ४७वां षष्टयंश मिथुन है अतः षष्टयंश कुण्डली की लग्न मिथुन होगी। इस चक्र से बिना गणित किये भी षष्ट्यंश का बोध कोष्ठक के अन्त में दिये गये अंशादि के द्वारा किया जा सकता है। प्रस्तुत लग्न सिंह के २३ अंश २५ कला २३ अंश से आगे है। अतः २३।३० वाले कोष्ठक में सिंह के नीचे मिथुन लिखा गया है अतः षष्टयंश लग्न मिथुन होगा।
ग्रहों के स्थान पहले समान ही स्थापित करने चाहिए।
-op
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२
च।
षष्टयंश कुण्डली चक्र के.४ गुन
>< ३श. ६
१२ ६ स्. बु. ११
५.
द्वितीयाध्याय
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