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राशि में द्वादशांश जानना हो, उसमें पहला द्वादशांश अपना, दुसरा आगेवाली राशि का, इसी प्रकार १२ द्वादशांश उस राशि के होंगे।
द्वादशांश कुण्डली बनाने की विधि--नवांश, दशमांश आदि की कुण्डलियों के समान है-अर्थात् लग्न स्पष्ट में द्वादशांश निकालकर द्वादशांश कुण्डली की लग्न बना लेनी चाहिए, अनन्तर पहले के समान सभी ग्रहों की लग्न बना लेनी चाहिए, अनन्तर पहले के समान सभी ग्रहों की राश्यादि के द्वादशांश निकालकर ग्रहों को द्वादशांश की राशि में स्थापित कर देना चाहिए ।
द्वादशांश बोधक चक्र • ||२३ ५ ६ ७ ८ ९ १०११) मे.व. मि.क. सि.क. तु. वृ. घ. म. कु. मी. अंश_सं.
| ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९१०/१२१२ १ २ ७३० ३
४ ५ ६ ७ ८ ९१० १११२ १ २ ३ १०।०४ | ५६७८९१० ११ १२ १ २ ३ ४ १२।३० ५
| १५। ० ७ ८ ९ १० १११२ १ २ ३ ४ ५ ६ १७।३०७
८ २१०१११२ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ २००८ । ९ १० ११ १२ १ २ ३ ४ ५/६७८२२३० ९
१० १११२ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ २५। ० १० | ११ १२ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९/१० २७१३० ११ | १२ । १२३४५६७८९१०११ ३००१२
उदाहरण-लग्न ४।२३।२५।२७ है, द्वादशांश बोधक चक्र में देखने पर सिंह में दसवां द्वादशांश वृष राशि का है। अतः द्वादशांश कुण्डली की लग्न वृष राशि होगी। ग्रह स्थापन पहले के समान किया जायेगा।
द्वादशांश कुण्डली ३ श०
के ०१ ग. ४ ><२चं.
१२
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५सू०११म• बुत्र
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द्विवीयाध्याय
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