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३० अंश तक चन्द्रमा का होरा होता है। अतः यहाँ चन्द्रमा का होरा हुआ और होरालग्न ४ माना जायेगा।
___ ग्रह स्थापित करने के लिए स्पष्ट ग्रहों पर विचार करना है। पूर्व में स्पष्ट सूर्य ०।१०।७।३४ अर्थात् मेष राशि का १० अंश ७ कला ३४ विकला है । मेषराशि में १५ अंश तक सूर्य का होरा होता है, अतः सूर्य अपने होरा-५ में हुआ। चन्द्रमा का स्पष्ट मान ११०।२४।३४- वृष राशि का ० अंश २४ कला ३४ विकला है; वृष राशि में १५ अंश तक चन्द्रमा का होरा होता है। अतएव चन्द्रमा अपने होरा-४ में हुआ। मंगल का स्पष्ट मान २१२११५२।४४-मिथुन राशि का २१ अंश ५२ कला ४४ विकला है। मिथुन राशि में १६ अंश से ३० अंश तक चन्द्रमा का होरा होता है अतः मंगल चन्द्रमा के होरा-४ में हुआ। बुध ०।२३।२१।३१-मेष राशि का २३ अंश २१ कला ३१ विकला है। मेष राशि में १६ अंश से चन्द्रमा का होरा होता है अतः बुध चन्द्रमा के होरा-४ में हुआ। इसी प्रकार बृहस्पति सूर्य के होरा-५ में, शुक्र सूर्य के होरा५ में, शनि सूर्य के होरा-५ में, राहु चन्द्रमा के होरा-४ में और केतु चन्द्रमा के होरा-४ में आया।
होरा कुण्डली चक्र
लग्न ४ चं० मं० के. शु० ५
बु० रा. स. श. गु०
द्रेष्काण- १० अंश का एक द्रेष्काण होता है, इस प्रकार एक राशि में तीन द्रेष्काण-१ अंश से १० अंश तक प्रथम द्रेष्काण, ११ से २० अंश तक द्वितीय द्रेष्काण और २१ अंश से ३० अंश तक तृतीय द्रेष्काण समझना चाहिए।
जिस किसी राशि के प्रथम द्रेष्काण में ग्रह हो तो उसी राशि का, द्वितीय द्रेष्काण में उस राशि से पंचम राशि का और तृतीय द्रेष्काण में उस राशि से नवम राशि का द्रेष्काण होता है । सरलता से समझने के लिए द्रेष्काण चक्र नीचे दिया जाता है
द्रेष्काण चक्र
मे. वृ. मि. क. सि.क. तु. वृ. घ. म. 'कु. मी.अंश | १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९१०/११/१२/१० । ५ ६ ७ ८ ९१० ११ १२ १ २ ३ ४२० । ९१० ११ १२ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८/३०
दिलोवाध्याय
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